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________________ किसी भी व्यक्ति के लिए करोड़पति होना जितने बड़े पुण्य की बात हो सकती है, उसका आत्म-ज्ञानी होना उससे भी लाख गुणा बड़े पुण्य की बात होती है। दुनिया की नज़र में किसी के लिए अंबानी बनना कठिन हो सकता है। लेकिन मैं बता दूँ, अंबानी बनना फिर भी आसान हो सकता है, लेकिन एक योगी, आत्म-ज्ञानी होना करोड़पति और अरबपति बनने से भी ज़्यादा मूल्यवान होता है । यमराज को जब लगा कि नचिकेता स्थिरचित्त वाला व्यक्ति है, ऐसे मन का मालिक है, जो किसी भी स्थिति में चलायमान नहीं हुआ है, तब यमराज नचिकेता के प्रति प्रसन्न होते हैं। कोई व्यक्ति परीक्षा में सफल होने पर ही उस विषय में सफल माना जा सकता है। नचिकेता उस परीक्षा में सफल हो गया था। वह प्रलोभनों में नहीं आया । मृत्यु के देवता को देखकर डरा तक नहीं। तब यमराज को लगा कि इस बालक से मृत्यु के बारे में, आत्म-ज्ञान के बारे में बात करूँ, तो कोई अनुचित न होगा । कठोपनिषद् कहता है - यमराज ने अपनी ओर से नचिकेता को समझाया, श्रेय और है तथा प्रेय और है। वे दोनों विभिन्न प्रयोजन वाले होते हुए भी पुरुष को बाँधते हैं । इन दोनों में से श्रेय का ग्रहण करने वाले का शुभ होता है और जो प्रेय को वरण करता है, वह पुरुषार्थ से पतित हो जाता है। श्रेय और प्रेय - ये दोनों मनुष्य के सामने आते हैं। बुद्धिमान मनुष्य इन दोनों के स्वरूप पर विचार करके उनको पृथक्-पृथक् समझ लेता है । विवेकी पुरुष प्रेय के सामने श्रेय का ही वरण करता है, किन्तु मूढ़ लोग लौकिक योग-क्षेम की इच्छा से प्रेय को अपनाता है । I यमराज ने नचिकेता को पात्र समझते हुए प्रतीकात्मक रूप से यह समझाने का प्रयास किया कि दो मार्ग हैं - एक प्रेय और दूसरा श्रेय । प्रेय मार्ग वह है, जो प्रिय लगे और श्रेय मार्ग वह है, जो कल्याणकारी हो, उत्थान करने वाला हो । श्रेय यानी श्रेष्ठ, कल्याण से जुड़ा हुआ मार्ग । प्रेय यानी प्रेम से जुड़ा मार्ग। यानी एक संसार - पथ, दूसरा कल्याण-पथ।सामान्यतौर पर कोई भी इंसान श्रेय के बारे में ज़्यादा नहीं सोच पाता, वह प्रेम के बारे में सोचता है । व्यक्ति को वह अच्छा लगता है, जो प्रिय होता है । वस्तु वह अच्छी लगती है, जो प्रिय होती है। मकान, कपड़ा, धन सबकी अपनी-अपनी रुचियाँ हैं । हर व्यक्ति की प्रियता अलग-अलग हो सकती है। I आजकल हरेक के हाथ में मोबाइल दिखता है । आपने महसूस किया होगा कि हर मोबाइल से अलग-अलग रिंग टोन बजती है। किसी होटल में खाना खाने जाओ तो मीनू में पचास आइटम होते हैं । जिसे जो पसंद होता है, वही आइटम मँगवाता है। लेकिन मात्र प्रियता ही सब कुछ नहीं होती । व्यक्ति को प्रेय और श्रेय के बीच संतुलन बिठाना आना चाहिए। जीवन वीणा के तार की तरह होना चाहिए। तार संतुलित रहेंगे, 121 Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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