________________
11
आत्मा में खिलाएँ अनासक्ति के फूल
यमराज ने आत्म-ज्ञान की जिज्ञासा लेकर उनके सम्मुख उपस्थित हुए नचिकेता को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिए, लेकिन नचिकेता किसी भी प्रलोभन में आने की बजाय यमराज से यही अनुरोध करता है, 'मैं तो आपसे आत्म-ज्ञान प्राप्ति की मुमुक्षा लेकर उपस्थित हुआ हूँ।' सामान्य तौर पर लोभ - प्रलोभन के निमित्त पाकर प्रत्येक व्यक्ति कर्त्तव्य-मार्ग से च्युत हो जाया करता है, लेकिन इंसान की सच्ची कसौटी तभी होती है, जब वह सामने अनुकूल निमित्त उपस्थित होने पर भी अपनी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए कृत संकल्प रहता है । उसे जो ज्ञान प्राप्त करना है, जो मंज़िल पानी है, उसे पाकर ही रहता है। वह यही कहता है - 'मैं तो केवल आत्म-ज्ञान का उपासक हूँ, ज्ञान पाने का आकांक्षी हूँ ।' जो ऐसा सोचता है, वही उस परम सत्ता तक पहुँच पाता है ।
अनुकूल और प्रतिकूल निमित्त इंसान को प्रभावित करते हैं । अनुकूल निमित्त पाकर इंसान फिसल जाया करता है और प्रतिकूल निमित्त देखकर वह खिन्न हो जाया करता है । यह प्राणीमात्र की प्रकृति है । यमराज ने भी यही समझा कि नचिकेता ने पहले वर के रूप में पिता की प्रसन्नता चाही, पिता का कल्याण चाहा और दूसरे वर के रूप में अग्नि का रहस्य जानना चाहा, अग्नि रूप बुद्धि का रहस्य समझने का प्रयास किया । इसी तरह उसने जब तीसरे वर के रूप में मृत्यु का रहस्य, आत्म-ज्ञान का रहस्य जानना चाहा, तो यमराज ने सोचा कि यदि आत्म-ज्ञान और मृत्यु का रहस्य इंसान के हाथ लग जाएगा, तो यह यमराज के लिए ख़तरे से खाली नहीं होगा । यही सोचकर यमराज ने नचिकेता को अनेक प्रलोभन दिए, ताकि वह उन प्रलोभनों में घिर कर रह जाए, लेकिन नचिकेता तो किसी और ही मिट्टी का बना था । यमराज भी जानता था कि मृत्यु का रहस्य जानने लायक नचिकेता की पात्रता को परखे बग़ैर उसे इस तरह की जानकारी देना भारी पड़ सकता है । इसलिए परीक्षा ज़रूरी है ।
Jain Education International
120
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org