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________________ तीर्थाटन और देशाटन - दोनों साथ-साथ हो जाते हैं । जहाँ लगता है, चार पैसे लगाने हैं, बिना किसी को पूछे लगा देते हैं। इस तरह दान भी हो जाता है । मन को संतोष भी मिलता है। बच्चों से कुछ लेते नहीं, क्योंकि उनके खुद के पास ही इतना है कि कुछ माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये साधक हर वर्ष 31 मार्च को वर्षभर प्राप्त ब्याज का हिसाब कर लेते हैं । कुछ बच जाता है, तो उसे गौशालाओं को दान दे देते हैं । अगले अप्रेल से फिर नया खाता खुल जाता है। उन्होंने बैंक में वसीयत कर रखी है कि जब तक वे और उनकी पत्नी जीवित हैं, तब तक इस ब्याज का उपयोग वे करेंगे और जिस दिन दोनों की आँख बंद जाएगी, सारी राशि एक चेरिटेबल ट्रस्ट में चली जाएगी। यह ट्रस्ट दीन-दुखियों की सेवा करेगा। इसे कहते हैं, जीवन का प्रबंधन। खुद का काम भी हो गया । चाह भी ज़्यादा न रही । आसक्ति से भी छूट गए । ऐसा कर पाएँ, तो समझना जीवन को सार्थक किया अन्यथा केवल मुनियों के पास गए, उनसे प्रवचन भी सुना, लेकिन भीतर नहीं उतारा। जैसे गए थे, वैसे ही लौट आए। जो सुना, वहीं पांडाल में झटक आए । कोशिश करनी पड़ती है। दो क़दम बढ़ाने पड़ते हैं । परिणाम आज नहीं तो कल आएगा, परिणाम को आना ही पड़ेगा। पानी को एक स्थान पर रोककर उसे पूरे प्रवाह से छोड़ा जाए, तो बिजली बनाने का रास्ता खुल जाता है । 1 अपने हित के लिए हमें आगे बढ़ना चाहिए । जहाँ जीवन और संबंधों का आत्म-ज्ञान हो जाएँ, वहीं से लौटे चलें । तय कर लें कि शेष जीवन अब कैसे जीना है, कितने क़दम संसार के लिए और कितने क़दम भगवान के लिए चलने हैं ! इस तरह का मूल्यांकन करने वाले ही नचिकेता बन सकते हैं। जो ऐसा नहीं कर पाते, वे ययाति बनकर रह जाते हैं । उनकी प्रज्ञा का दीप बुझा हुआ ही रहता है । हर पल अपने काम का लेखा-जोखा करते रहें । आज कितना अच्छा किया, कितना बुरा हो गया, किसका दिल दुखाया, किसके चेहरे पर मुस्कान लाए - इन सारी बातों पर विचार करना होगा । अन्यथा माँ - बाप चले गए, घर में उनके चित्र लग गए। एक दिन हम भी चले जाएँगे। हमारे बच्चे हमारे चित्र लगा लेंगे। सब यहीं छोड़कर जाना है; इसलिए जो हाथों से काम कर लिया, उसी का परिणाम मिलेगा। नचिकेता को बोध हो गया था; इसीलिए तो वह यमराज के किसी भी प्रलोभन में नहीं आया। वह तो बार-बार इतना ही कहता रहा, हे यमराज, आप तो मुझे मृत्यु का रहस्य समझा दीजिए। यमराज नचिकेता को किस तरह का ज्ञान देते हैं, इसे आने वाले पृष्ठों में देखेंगे । 88888 Jain Education International 119 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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