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दांपत्य-जीवन उष्णता-रेचन का साधन है। इस पर संयम बरतें। इसके लिए मेवे का बेहिसाब उपयोग न करें। खाने की इच्छा ही है, तो पहले मेवे को रातभर पानी में भिगो दें। इससे उसकी उष्णता समाप्त हो जाएगी। खाओ, लेकिन उसकी तासीर कम कर दो। ज्यादा घी-तेल मत खाओ, शरीर में चिकनाहट बढ़ेगी। यह शरीर के लिए ही घातक हो जाएगी। तरी, मिर्च-मसाले वाला भोजन उष्णता जगाता है । जहाँ तक संभव हो, उष्णता-प्रधान भोजन मत करो। जैसी शरीर की प्रकृति हो, वैसा ही भोजन करना चाहिए।
कुछ लोगों को गुस्सा नहीं आता और कुछ मामूली बात पर ही भड़क उठते हैं। हर किसी की प्रकृति में कोई-न-कोई दोष ज़रूर होता है। हर व्यक्ति अपनी प्रकृति को समझे । नचिकेता कहते हैं, जीवन अल्प है, सबको मरना है। समझदार धन का अर्जन करता है, तो उचित तरीके से उसका विसर्जन भी करता है, लेकिन जीवन के राग-रंग में उलझे लोग जीवनभर कमाने में ही लगे रहते हैं। ग़रीब हो, तो खूब मेहनत करो, खूब कमाओ लेकिन एक समय आने पर उसकी सीमा तो तय होनी ही चाहिए। अब कई बंगले हैं, कारें हैं, बच्चे पाँवों पर खड़े हो गए हैं, तो अब यहाँ से निकल लो। मोह-माया कम करो । बुज़ुर्ग हो गए हो, अब प्रभु का भजन कब करोगे? धंधा जवान लोगों के लिए है। साठ साल के होते ही काम-धाम से संन्यास ले लो, खूब कमा लिया, अब अपनी गद्दी बच्चों को सौंप दो। साठ साल भी न कमा सके, तो अब क्या तीन की तेरह कर लोगे। जीवन के पहले पच्चीस साल पढ़ने के लिए, दूसरे पच्चीस साल गृहस्थी के। अगले पच्चीस साल जीवन में रहकर जीवन से उपरत होने के लिए हैं । इसके बाद खुद को प्रभु भजन में व्यस्त कर लो, अब भज कलदारम् नहीं, भज गोविन्दम् की स्वर लहरियाँ सुनाई देनी चाहिए।
पैसा कमाने की एक उम्र होती है, उसके बाद संभल जाओ। जो होना था, वह हुआ। अब संभल चलो। अभी मरे नहीं हो, जीवन का संध्याकाल है, संभल जाओ। नहीं तो फिर जन्म लोगे, फिर मरोगे। यह तो अंतहीन सफर है। कुछ लोग समझदार होते हैं। वे समय रहते अपने लिए मुक्ति का रास्ता खोज लेते हैं। कुछ ऐसा नहीं कर पाते। जीवन में दो रास्ते हैं - गति और स्थिति । गति भी चलती रहे और खुद को किसी स्थिति में स्थितप्रज्ञ भी बना लो। यही जीवन जीने की कला है। संसार और संन्यास - दोनों का आनन्द लिया जाना चाहिए। केवल संन्यासी बन जाओगे, तो संसार का आकर्षण बार-बार अपनी ओर खींचता रहेगा। इसलिए संसार में भी रहकर देख लो। भोग भी कर लो, ताकि मन में न रह जाए। थोड़ा डांस भी कर लो, कुछ गोटियाँ भी फिट कर लो, लेकिन उचित समय पर लौट आओ।
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