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________________ खरीदी। बीस लाख रुपए लड़की वालों को दिए, तब कहीं जाकर शादी हो पाई। पैसे देकर शादी की और उस शरीर की चाह समाप्त नहीं हो रही। चाट-चाट कर भी कितना चाटोगे? जिन लोगों के भीतर भोगों की इच्छा होती है, उन्हें दस लाख रुपए देने पड़ें, तब भी वे तैयार रहते हैं। पर जिनके भीतर मोक्ष की मुमुक्षा जग जाया करती है, वे किसी महावीर की तरह, किसी बुद्ध की तरह राज-पाट, पत्नी तक को छोड़कर निकल जाया करते हैं । यह जीवन के प्रति अपनी-अपनी सोच और समझ का परिणाम है। यमराज ने अपनी ओर से नचिकेता को प्रलोभन दिए, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। नचिकेता ने यमराज को जो जवाब दिए, वे अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं । नचिकेता पूर्व जन्म का कोई साधक रहा होगा, जिसने मुमुक्षु की तरह जवाब दिए। ये जवाब उन लोगों के लिए प्रेरणादायी हैं, जो मुमुक्षु की राह पर क़दम बढ़ा रहे हैं । ये जवाब प्रेरणा के प्रदीप के समान हैं । एक प्रकाशदीप के समान हैं, ज्योतिपुंज हैं। नचिकेता ने क्या जवाब दिया, आइए, हम भी जानें। नचिकेता कहते हैं, 'हे यमराज ! ये क्षणभंगुर भोग मनुष्य की संपूर्ण इन्द्रियों के तेज को नष्ट कर देते हैं। यह सारा जीवन भी अल्प ही है। आपके वाहन और नाच-गान आपके पास ही रहें। मुझे नहीं चाहिए।' नचिकेता ने यह जवाब क्यों दिया, आइए, ज़रा इसे समझें । यम यानी मृत्यु के देव। साक्षात मृत्यु । यमदूतों के अधिपति। यमराज ने नचिकेता को भोगों की प्राप्ति का प्रलोभन दिया। हे नचिकेता ! मैं तुम्हें देवलोक की रमणियाँ उपलब्ध करवा देता हूँ। तब भी नचिकेता नहीं माने। नचिकेता ने यह जवाब क्यों दिया। संभवतः उन्हें अपने पूर्व जन्म का कोई जातीय घटनाक्रम स्मरण रहा हो जिसके चलते ये शब्द निकल कर आए कि भोग मनुष्य की इन्द्रियों के तेज को नष्ट कर देते हैं। ___ दुनिया में दो शब्द तो सुने जाते हैं - योग और भोग। लेकिन एक तीसरा शब्द भी है - रोग। भोग में उलझोगे, तो रोग से मुलाकात हो ही जाएगी। भोग में रोग के नए-नए द्वार खुलते चले जाएँगे। भोग को भी समझ कर भोगना चाहिए। भोग हैं ही इसलिए कि उनका भोग किया जाए। लेकिन कितना, इसकी कोई एक सीमा तो तय करनी ही पड़ेगी। ऐसा कर पाए, तो मनुष्य धीरे-धीरे भोगों से उपरत होता चला जाएगा। जैसे कमल कीचड़ में उगता है, लेकिन धीरे-धीरे उसकी पंखुड़ियाँ कीचड़ से उपरत होती चली जाती हैं । ऐसे ही हमें भी भोगों के पार चलना है। भोग में उलझे, तो रोग और भोग से निकले तो योग। भोग क्या है ! कीचड़ ही तो है। नर और मादा जहाँ मिलते हैं, वह क्या है ? कीचड़ का ही तो स्थान है। भले ही वहाँ से देह-सुख या इन्द्रिय-सुख मिल जाता है, लेकिन 114 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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