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नहीं हो सकता। फरीद जैसी फ़कीराई किसी-किसी में आती है। कबीर जैसी साधुक्कड़ी किसी-किसी में होती है। आनंदघन जैसा आनंद किसी-किसी में साकार होता है। रैदास जैसा रमता जोगी कोई-कोई होता है। मैं संतों की बहुत इज़्ज़त करता हूँ । जो लोग बाहर से संत बने हैं, काश वे भीतर से भी संत बन जाएँ । भोग बहुत हो गया । अब थोड़ा योग हो जाए। भोग की भावना और योग की प्रार्थना - दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध हैं । कोई जागे तो सवेरा हो ।
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अगर किसी की रुचि भोग की है, तो पहले उसकी पूर्ति कर लें। वहाँ से तृप्त हो जाएँ । लगे कि बस, बहुत हो गया, अब कल्याण चाहिए, तब ज्ञान की बात करें। भूखा आदमी महाराज के पास जाएगा, तो क्या करेगा ? पहले तो वह लड्डू खाना चाहेगा । महाराज बन जाएगा, तो भी बिदाम की कतलियाँ उसकी आँखों के सामने नृत्य करेंगी । ज़मीन, आश्रम, धन के लालच में पड़ जाएगा । कोई तृप्त आदमी संन्यास लेगा, तो त्यागपूर्ण जीवन की मिसाल बन जाएगा; अन्यथा तृप्ति नहीं हो पाएगी ।
तब
ऐसा हुआ कि एक आदमी ने विज्ञापन दिया कि पत्नी चाहिए। अगले सप्ताह दो सौ पत्र आ गए। वह प्रसन्न हुआ, लेकिन ज्यों-ज्यों पत्रों को खोलता गया, ठहाके लगाता गया। सभी पत्रों में एक ही बात लिखी थी - हमारे पास पत्नी है, तुम्हे चाहिए तो तुम ले जाओ। हम तो उससे तृप्त हो गए हैं। नहीं तो वही बात, विवाह होता है, विदाई के समय लड़की रोती है, लेकिन बाद में लड़के की बारी आ जाती है। एक आदमी ने किसी से पूछ लिया, तुम्हें अक्सर परेशान देखता हूँ । तुम्हारी पत्नी गालियाँ निकालती रहती है, तुमने क्या सोच कर शादी की थी ? उसने जवाब दिया, सोचता तो शादी थोड़े ही करता। पहले सोच लेता, तो आज ये दिन न देखने पड़ते ।
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यह दुनिया है । नहीं है तो पति चाहिए, पत्नी चाहिए; मिल गए, तो अब छुटकारा चाहिए। ये दुनिया के रंग हैं। जिन लोगों के भीतर तृष्णा रहती है, वे जीवनभर गधे की लातें खाते रहते हैं लेकिन जो लोग जीवन की समझ प्राप्त कर लेते हैं, वे भोग के बाद भी ख़ुद को होश में रखते हैं । उनका बोध और गहरा होता चला जाता है । वे अपने भीतर अनासक्ति के फूल खिला लेते हैं। निर्लिप्तता, निर्लोभ, निस्पृहता उनके भीतर प्रकट होने लगती है । वे राजचन्द्र बन जाते हैं । यहाँ तो जो जीता वही सिकंदर कहलाता है, शेष सभी हारे हुए हैं।
भले ही कोई किसी क्षेत्र में जीत गया हो, लेकिन काम-क्रोध-मोह - लोभ से हर कोई हारा हुआ है। हम सब अपनी-अपनी तृष्णा से पागल हैं। एक स्त्री की तृष्णा है, जो समाप्त ही नहीं होती । हालत यह है कि लड़कियों की कमी होती जा रही है । लोग दहेज देकर लड़कियाँ लाने लगे हैं । एक महिला ने बताया, उसने अपने बेटे के लिए बहू
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