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________________ का भूखा है, तो रमणियाँ दे सकता हूँ। धन का भूखा है, तो उसे अट्टालिकाएँ दे देता हूँ। आखिर यमराज के सामने पहुँच कर कोई खाली हाथ तो लौटेगा नहीं। उसे तो तृप्त होकर ही जाना चाहिए। जैसी जिसकी चाह, यमराज पूरी करने को तत्पर । नचिकेता के मन को टटोल रहे हैं यमराज। यमराज ने अनेक प्रलोभन दिए, लेकिन नचिकेता माना ही नहीं। वह तो सिर्फ और सिर्फ मृत्यु का रहस्य जानने को उत्सुक था। किसी सद्गृहस्थ के सामने भगवान प्रकट हो जाएँ और उससे कहे कि क्या माँगते हो, तो वह क्या माँगेगा! यही कि फैक्ट्री में मंदी चल रही है, तेजी ला दो। पत्नी कहना नहीं मानती, इसका मन बदल दो। लड़के के लिए लड़की नहीं मिल रही, कोई गोटी फिट कर दो। बस गोटियाँ ही फिट करने में लगा रहेगा वह। ऐसे लोग कम ही होते हैं जो गुरुजनों के पास जाकर बैठे और आत्म-ज्ञान की शिक्षा पाना चाहें । आत्म-ज्ञान की चाहत विरले लोगों में होती है। हर किसी की चाहत सांसारिक ज्ञान और सांसारिक उपलब्धियों की होती है। लोग संतों के पास आध्यात्मिक ज्ञान के लिए कम जाते हैं। कोई तो हाथ दिखाने जाता है, कोई टोना-टोटका करवाने जाता है, तो कोई ग्रह-गोचर की दशा सुधारने जाता है। जो टोटकेबाज़ होगा, वह टोटका बताएगा; पर जो आत्म-ज्ञानी होगा, वह आत्म-ज्ञान के द्वार खोलेगा। किसी समय मेरे भीतर भी आत्म-ज्ञान का रहस्य जानने की अभीप्सा जगी थी। इसके लिए मैंने अनेक संतों का द्वार खटखटाया। ठेठ हिमालय तक गया। गंगोत्री की गुफाओं में रहने वाले ऋषियों के पास गया। जिन्हें कुछ पता है, वे मौन हैं। जिन्हें पता नहीं है, वे ठगने-ठगाने का काम कर रहे हैं । क्षमा करें मुझे यह कहने के लिए कि चाहे संत हों या संसारी, सर्वत्र पैसा हावी हो गया है। संतों से कुछ लेने जाओ तो वे देते बाद में हैं, पहले खुद लेते हैं। क्या ज़माना आ गया है ? संत लोग गृहस्थियों से तो कहते हैं छोड़ो, और छोड़कर हमारे झोले में डाल दो। संत संत रहे, तो संत का दर्शन भी पापनाशक होता है । संत संसारी हो जाए, तो ख़ुद तो डूबता ही है, औरों को भी ले डूबता है। संसारी तो पूरी तरह संसारी हो गए हैं, लेकिन संन्यासी भी संसारियों के मोहजाल में फँस कर आधे संसारी हो गए हैं। अब उनके पास अध्यात्म कम हो गया है। संसारी के पास तो अध्यात्म था ही नहीं। संन्यास लेना सौभाग्य की बात है। कपड़े बदलने से कोई संन्यास नहीं होता। शेर की खाल ओढ़ लेने मात्र से कोई गधा शेर नहीं हो जाता। संन्यास त्याग का नाम है, समर्पण का नाम है, प्रभु के अलावा सब कुछ छोड़ देने का मार्ग है। संन्यास मैंने भी लिया है, पर मैं बता देना चाहता हूँ कि जीवन में सच्चा संन्यास बगैर भगवत-कृपा के 112 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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