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________________ संख्या बढ़ाता रहा। फिर सोचने लगा, क्यों न राजा से उसका राज्य ही माँग लूँ, रोज़ाना की झंझट ही मिट जाएगी। ___ उसे चुप देखकर राजा ने पूछ लिया, 'किस सोच में पड़ गए ब्राह्मण ? माँगो, क्या माँगते हो?' कपिल के विचारों ने फिर करवट बदली। वह कुछ माँगने ही वाला था कि मन ने उसे धिक्कारा, छि: कैसा ब्राह्मण है तू, एक राजा तुझे तेरी इच्छा से कुछ दे रहा है और तू उसका राज्य ही चाहने लगा है ! कपिल को बोध हो गया। वह सोचने लगा, चाह को कोई अंत नहीं है। सब कुछ पा लिया जाए, तब भी तृप्ति नहीं होती। कपिल ने सोच लिया, अब कुछ नहीं चाहिए। मनुष्य को ज्यों-ज्यों मिलता चला जाता है, उसकी भूख बढती चली जाती है, लोभ बढ़ता चला जाता है। एक समय ऐसा आता है कि इंसान को सोने चांदी से बने कैलाश पर्वत मिल जाएँ, तब भी उसे तृप्ति नहीं होती। यमराज ने भी नचिकेता के उस मन को टटोलने का उपक्रम किया। उसे प्रलोभन दिए, लेकिन नचिकेता ज्ञानी था, उम्र भले ही कम थी। कुछ लोग कम उम्र में ही प्रबुद्ध हो जाया करते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो बूढ़े होने के बाद भी बुद्धू ही रह जाया करते हैं । यह तो व्यक्ति पर है कि वह अपना कितना विकास कर पाता है। __कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो प्रहलाद, कार्तिकेय, ध्रुव, अतिमुक्त या नचिकेता बनते हैं। कम उम्र में ही ये लोग ज्ञानी हो जाते हैं लेकिन ययाति जैसे लोग सोचते हैं, थोड़ा और जी लूँ, अभी मेरे सपने अधूरे हैं, अभी मेरी तमन्नाएँ पूरी नहीं हुई। नचिकेता बाल-वय में ही इतना ज्ञानी हो गया कि उसे मृत्यु से साक्षात्कार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं - एक तो वे जो ठोकर लगने पर संभल जाते हैं और दूसरे वे, जो दूसरों को ठोकर लगती देखकर सचेत हो जाते हैं। ठोकर खाकर जगना जीवन का संयास है। दूसरों को ठोकर खाते देख संभल जाना जीवन का आत्म-बोध है। जो हुआ, वही तो होना था; अब भी मौका है, संभल चलो। क्या हुआ जो भटके हो। अब भी अवसर है, लौट चलो। हम अब भी अपने जीवन के बोध की ओर लौट सकते हैं। अगर वही गधे की लातें खाने की इच्छा है, तो जन्म-जन्मान्तर लातें खाते रहेंगे और मुक्ति नहीं मिलेगी। यह तो समय-समय का फ़र्क है, कोई गौपालक बन जाता है और कोई गौशाला का नौकर। कोई व्यक्ति गौतम बुद्ध बन जाता है और कोई बुद्ध ही बना रह जाता है। दोनों तरह के जीवन में संभावनाएँ रहती हैं । यमराज जब संवाद कर रहे हैं तो सामने एक बालक है । वे देखना चाहते हैं कि उसके भीतर भोगों के प्रति चाह है या नहीं। वह भोगों 111 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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