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अपराविद्या के उपासक । अविद्या की रुचि वालों को तो भोग ही अच्छा लगता है, लेकिन जिन लोगों में आत्म-विद्या की जरा भी प्यास है, अभीप्सा है; वे लोग तो भोग की दहलीज़ पर क़दम रखने के बावजूद अंततः भोगों को परास्त करेंगे तथा आत्म-विद्या को प्राप्त करना चाहेंगे ।
यमराज ने नचिकेता को अपनी ओर से अनेक प्रलोभन दिए, लेकिन नचिकेता किसी भी प्रलोभन में नहीं आया । प्रलोभन राह से भटका दिया करते हैं । एक पुरानी कहानी है। पुराने ज़माने में एक ब्राह्मण था, जिसका नाम था कपिल । अपने गुरु के पास अध्ययन करता था। वह जिस व्यक्ति के यहाँ भोजन करने जाता था, उसकी एक सुन्दर पुत्री थी। समय का फेर, कपिल उस कन्या के प्रेम में पड़ गया । कन्या को भी उससे प्यार हो गया। कुछ दिन तो दोनों ने ख़ुद पर नियंत्रण रखा, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर चला गया तो एक दिन दोनों घर से भाग निकले। वे एक राज्य में जाकर अपनी पहचान छिपाकर रहने लगे। कपिल दिनभर मेहनत करता, लेकिन इतना नहीं कमा पाता कि दो नों का पेट ठीक से भर सके। अभावों में दिन बीत रहे थे ।
एक दिन कपिल से अपनी प्रिय पत्नी का उदास चेहरा न देखा गया। उस राज्य का राजा रोज़ाना सुबह सबसे पहले चेहरा दिखाने वाले ब्राह्मण को दो माशा सोना दिया करता था । कपिल ने राजा से मिलने का फैसला किया। उसे लगा कि रात को सोया ही रह गया, तो अलसुबह राजा के सामने नहीं पहुँच पाऊँगा । यह सोचकर वह आधी रात को ही घर से निकल पड़ा। रात में उसे राजमहल के आसपास घूमते देख सैनिकों ने चोर समझ कर उसे पकड़ लिया। सुबह उसे राजा के सामने पेश किया गया।
कपिल ने फैसला कि वह सब कुछ सच बता देगा, फिर चाहे जो भी हो। राजा को भी लगा कि यह कोई गरीब ब्राह्मण है, चोर नहीं हो सकता। राजा ने पूछा कि क्या मामला है ? कपिल ने सारी कहानी सच बता दी कि महाराज, मैं गुरुकुल में अध्ययन करने गया, लेकिन वहाँ मुझे किसी से प्रेम हो गया और मैं उसे लेकर आपके राज्य में आ गया। यहाँ मेरा गुज़ारा नहीं चल रहा। पता चला कि आप सुबह सबसे पहले मिलने वाले को दो माशा सोना देते हैं। मैंने सोचा, कहीं सुबह देर न हो जाए, इसलिए रात को ही घर से निकल पड़ा था ।
राजा उसकी सच्चाई जानकर बोला, 'माँगो, क्या माँगते हो ? जो भी माँगोगे, मैं तुम्हें निराश नहीं करूँगा ।' अब कपिल के मन में विचारों का मंथन होने लगा। जब राजा दे ही रहा है तो क्यों न दो माशा की बजाय दो तोला सोना माँग लूँ; पर नहीं, यह भी कम होगा। ऐसा करता हूँ, सौ अशर्फियाँ माँग लेता हूँ । नहीं, ये भी कम रहेंगी ; ऐसा करता हूँ, एक हजार अशर्फियाँ माँग लूँ । इस तरह वह विचारों-ही- विचारों में अशर्फियों की
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