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किसी नगर का सेठ हो जाऊँगा। एक दिन मैं उस नगर का राजा बन सकता हूँ। फिर तो मैं पड़ोसी राज्य पर आक्रमण करके उसका राज्य भी जीत लूँगा। एक-एक कर बहुत से राज्य जीत लूँगा। गुरु ने शिष्यों से कहा, मुझे हँसी इसलिए आ रही है क्योंकि बड़े-बड़े स्वप्न देखने वाले इस सौदागर की सातवें दिन मृत्यु होने वाली है। मैं चाहता हूँ, मेरा कोई शिष्य वहाँ जाकर उसे बताए कि सात दिन बाद वह मरने वाला है। हो सकता है उसकी आँख खुल जाए और वह इन सात दिनों में अपना जीवन धन्य कर ले। तब उसकी मृत्यु महोत्सव हो सकती है।
एक शिष्य गया और सौदागर को बताया। वह तो अपनी मौत के बारे में सुनते ही एक बार तो बेहोश हो गया। मौत की खबर सुनते ही बड़े-से-बड़ा पराक्रमी भी डर जाएगा। सौदागर को गुरु के पास लाए, उसे होश दिलाया गया। वह तो विक्षिप्त-सा नज़र आने लगा। गुरु से कहने लगा, मुझे बचाइए । गुरु ने कहा, यह सब छोड़; तेरी नहीं तेरे सपनो की मृत्यु होने वाली है। तू तो अपना जीवन धन्य कर । राजा परीक्षित को श्राप मिला था कि अमुक दिन आपकी मृत्यु हो जाएगी। उन्होंने किसी से उपाय पूछा तो बताया गया कि सात दिन तक भागवत सुनो। महापुरुषों के जीवन-चरित्र का श्रवण करो। अंत गति सुधर जाएगी। मति शुभ होगी, तो गति भी सुधर जाएगी। जब तक जीओ तब तक सद्बुद्धि बनी रहे और मरो तो सद्गति हो जाए। बस, इतनी प्रार्थना काफ़ी है।
गुरु ने सौदागर से कहा, अपने आप से मुलाकात करो, स्वयं में स्थित हो जाओ, अपनी बुद्धि रूपी गुफा में प्रवेश करो । तमन्नाएँ त्याग दो, भोग तो खूब कर लिया, अब अपने आप से मुलाकात करने का समय है। जो कुछ करो, ध्यानपूर्वक करो, सचेतनतापूर्वक करो। अपने आप में प्रवेश करो, भले ही मन उचट रहा हो, अनावश्यक तमन्नाएँ उठ रही हों, इन तमन्नाओं को शांत करते चले जाओ। यह सोचो कि मैं अपने अंतर्मन को शांत कर रहा हूँ, इसे आनन्दमय बना रहा हूँ। निर्वाण शांतम् अवस्था को प्राप्त करो ताकि जिस क्षण मृत्यु आ जाए, मन में एक ही भाव हो कि मैं मुक्त हो रहा हूँ। मुक्ति के भाव प्रगाढ़ करते चले जाओ। तब मृत्यु केवल काया की होगी, तुम पूरी तरह मुक्त हो जाओगे। ___मुक्ति की ज़रूरत क्यों है? ताकि बार-बार जन्मना और मरना न पड़े। इस दलदल से बाहर निकलें। जन्म-जन्मांतर के संस्कारों को यहीं क्षीण करके जाएँ। बैटरी होगी, तो टार्च तो जलेगी ही। काया के प्रति आसक्ति होगी, तो भोग भी सताएँगे, क्रोध भी पैदा होगा। कोई भी अपवाद नहीं है। प्रकृति की सारी संतानों में क्रोध होता है, काम होता है, भोग की इच्छा जगती है। किसी का भी अपमान हो, तो उसे क्रोध आएगा ही। प्राणी मात्र की यही प्रकृति है। कोई भी अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर पाता। महान्
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