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विश्व विजेता बनने का सपना लेकर निकले सिकंदर को एक बुढ़िया ने कहा, तुम दुनिया को जीतने निकले हो, तो अमुक गुफा में रहने वाले फ़क़ीर से ज़रूर मिलना। सिकंदर उस फ़क़ीर से मिला और उन्हें बताने लगा, मैं पृथ्वी ग्रह को जीतने निकला हूँ। फ़क़ीर यह सुनकर हँसा, तुम पृथ्वी ग्रह को जीतने निकले हो, तब तो तुमने खूब धनधान्य भी पाया होगा। सिकंदर ने कहा, हाँ, मैंने खूब आभूषण, अनाज एकत्र किया है। फ़क़ीर ने कहा, ऐसा करो यह एक खोपड़ी है, इसे जौ के दानों से भर दो। सिकंदर अपना तमाम अनाज उस खोपड़ी में उँडेल बैठा, लेकिन खोपड़ी भरी ही नहीं। सिकंदर हैरान रह गया। फ़क़ीर ने बताया कि इस खोपड़ी का नाम इच्छा है, यह कभी नहीं भर सकती।
एक आदमी ने बहुत से लोगों की किडनियाँ निकालीं और उन्हें बेचकर करोड़ों रुपए कमाए। बुरे काम का नतीजा भी बुरा होना ही था। उसके यहाँ छापा पड़ा और वह पकड़ा गया। आदमी की नीयत तो देखिए, वहाँ भी अधिकारियों को रिश्वत देकर छूटने का प्रयास करने लगा।
यमराज ने भी जब नचिकेता से कहा कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति का वरदान माँग ले, तो नचिकेता ने इनकार कर दिया। मृत्युदेव पृथ्वी पर आते होंगे, तो लोग उनसे कहते होंगे, यमदेव आप चाहो तो कुछ और ले जाओ, लेकिन हमारे प्राणों का हरण मत करो। इंसान और इसलिए जीना चाहता है क्योंकि अभी उसका मन नहीं भरा। अरे, आज भी वही कर रहे हो जो कल किया था और कल भी वही करना है, तो इसका अंत कहाँ होगा? रोजाना एक जैसा ही जीवन जीना है, तो कब तक ऐसा करोगे, मन तो कभी भरेगा ही नहीं।
कम जिओ या ज़्यादा, कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बेवकूफ लोग तो जीवन जीते चले जाते हैं, लेकिन प्रज्ञाशील लोग अपने निर्वाण का रास्ता तलाशते हैं। वे मृत्यु पर विजय पाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं ताकि बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाए; अन्यथा हर जन्म में वही काम करना है, फिर मर जाना है और नया जन्म ले लेना है। यही सिलसिला चलता रहेगा। हमारे भीतर छिपा यह जीवन जीने का पागलपन नहीं तो और क्या है ? समझदार लोग अपने जीवन को धन्य बना लेते हैं । मृत्यु के द्वार पर पहुँच कर वे अपनी मुक्ति का प्रबंध कर लेते हैं।
एक सद्गुरु नदी के किनारे बैठे थे। शिष्यों से वार्तालाप चल रहा था। यकायक गुरु हँस पड़े। एक शिष्य ने गुरु की हँसी का कारण जानना चाहा। गुरु ने उन्हें बताया कि इस नदी के दूसरे किनारे पर एक सौदागर अपने काफिले के साथ ठहरा हुआ है। इस समय वह नदी में नहा रहा है और उसके मन में विचार उठ रहे हैं कि आज मेरे पास दो गाड़ियों का काफ़िला है। कल चार गाड़ियाँ हो जाएँगी। फिर आठ और सोलह । मैं
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