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________________ पुरोहित बन गए। कुछ राह में मिली रमणियों के पाश में फँस गए। दो-तीन को किसी सेठ ने प्रलोभन दे दिया, वे वहाँ रह गए। ऊपर तो एक ही शिष्य पहुँचा। ___इसलिए कहा है, साधना का मार्ग बड़ा कठिन है। इस मार्ग पर दस रवाना होते हैं तो मंज़िल तक कोई एक-आध ही पहुँच पाता है। शेष प्रलोभन का शिकार हो जाया करते हैं। हर कोई ऊपर पहुँच जाएगा, तो वैकुण्ठ भी न रहेगा। वहाँ भी सर्राफा बाजार लग जाएगा, अर्थात् यहाँ पहुँचता कोई कोई ही है। यमराज ने नचिकेता को प्रलोभन दिया - जैसी भी इच्छा हो, पूरी करने का वर देता हूँ। मान जाओ। दुनिया में अनेक प्रकार के लोग होते हैं । ढेर सारे लोग होते हैं, जिनके पास इच्छाएँ होती हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके पास इच्छा-शक्ति होती है। इच्छाएँ होना कमज़ोरी है और इच्छा-शक्ति होना इंसान की महान् सफलता और उपलब्धि है । इच्छाएँ तो आकाश की तरह अनन्त कही गई हैं। इनका कोई अन्त नहीं है। इच्छाएँ सागर के समान अथाह हैं। आसमान का अन्त नहीं है और सागर की कोई थाह नहीं है; उसी तरह इच्छाएँ हैं। इच्छाओं का अंकगणित ही ऐसा है कि ज्यों-ज्यों हम पाते जाते हैं, ज़्यादा पाने की तृष्णा पैदा होती जाती है। अगर कोई इंसान सजगतापूर्वक, सचेतनापूर्वक, सतर्कतापूर्वक और बोधपूर्वक अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर रहा है, तो एक दिन वह अपनी बेहोशी और अज्ञान के रास्ते से बाहर निकल आएगा। ज़रा सोचो, कौन व्यक्ति है जिसने एक मुकाम हासिल करने के बाद विश्राम कर लिया हो। बड़े-से-बड़े राजनेता ने एक पद पाने के बाद दूसरे पद के लिए भागदौड़ शुरू कर दी। शांति नहीं है क्योंकि इंसान अपनी इच्छाओं पर अंकुश नहीं लगा पाता। राजा भर्तृहरि ने खूब राज किया, भोग भी भोगे लेकिन एक समय आया, जब वे राजा न रहे, राजर्षि हो गए। फिल्मी सितारों को देखो। अमिताभ ने इतनी फिल्में बना लीं, खूब पैसे कमा लिए, लेकिन अब भी विश्राम नहीं है। अम्बानी बंधुओं ने अरबों रुपए कमाए होंगे लेकिन भूख शांत नहीं होती। अभी इच्छा है, और कंपनी खोलूँ। स्तन टाटा ने एक आदर्श उदाहरण पेश किया है। उन्होंने पिछले वर्ष कहा था, व्यापार करने का यह मेरा अंतिम वर्ष है। फिर मैं संन्यास ले लूँगा। मैं इसे कहूँगा जीवन की बुनियादी समझ। व्यापार ज़रूर करना चाहिए। समृद्धि भी हासिल करनी चाहिए लेकिन एक सीमा पर पहुँच कर अपने परिग्रह पर अंकुश लगा लेना चाहिए। संग्राहक बुद्धि पर अंकुश लग जाना चाहिए। बड़े-बड़े संत मठ और आश्रम बनाते हैं । बनाते हैं इसमें कोई आपत्ति नहीं है; पर बनाते ही चले जाते हैं, यह ठीक नहीं है। आखिर कहीं तो सीमा हो। गृहस्थ व्यक्ति से कहा जाता है कि गृहस्थ आश्रम के बाद वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम की तरफ बढ़ो। अच्छा होगा, जो संत लोग समाज कल्याण में बहुत ज़्यादा उलझ चुके हैं, वे समाज कल्याण को भी घर-गृहस्थी का ही जंजाल समझें। एक उम्र आने पर सारी सरपच्चियाँ छोड़ देनी चाहिए। जैनों में एक आचार्य हुए हैं - श्री 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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