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________________ हों और बच्चा अचानक आ जाए, तो उसे वहाँ से हटाने का रास्ता ढूँढ ही लिया जाता है। चाहे इसके लिए उसे टॉफी का लालच ही क्यों न देना पड़े। यमराज ने भी अपनी ओर से खेल खेला, प्रलोभन का खेल। उन्होंने नचिकेता को प्रलोभन देना चाहा, ताकि वह मृत्यु का रहस्य जानने की ज़िद न करे। यमराज ने उससे कहा, 'हे नचिकेता, तू सौ वर्ष की आयु वाले बेटे-पोते, बहुत से पशु, हाथी, स्वर्ण और घोड़े माँग ले, विशाल भूमंडल भी माँग ले तथा स्वयं भी जितने वर्ष इच्छा हो जीवित रह । तू धन और चिरस्थायी जीविका माँग ले। मैं तुझे कामनाओं को इच्छानुसार भोगने वाला बना देता हूँ। मनुष्य-लोक में जो-जो भोग दुर्लभ हैं, उन सब भोगों को तू स्वच्छंदता पूर्वक माँग ले। यहाँ रथ और बाजों के सहित ये रमणियाँ हैं। ऐसी स्त्रियाँ मनुष्य को प्राप्त करने योग्य नहीं होती। मेरे द्वारा दी हुई इन रमणियों से तू अपनी सेवा करा । परन्तु हे नचिकेता, तू मरण संबंधी प्रश्न मत पूछ।' यह कहकर यमराज ने अपनी ओर से एक गोटी फिट करनी चाही। यमराज कहते हैं, हे नचिकेता, तुम मेरे यहाँ आए, तुम्हारा स्वागत है। तुम कुछ भी पूछ लो, लेकिन मृत्यु का रहस्य जानने की ज़िद न करो। यह कोई खेल नहीं है। तू इससे बच। दुनिया में लोग प्रलोभन से डिग जाया करते हैं। मनुष्य को हर कोई प्रलोभन देने को तैयार है। प्रकृति मनुष्य को प्रलोभन देती है। एक इंसान दूसरे को प्रलोभन देता है। आज की भाषा में इस प्रलोभन को रिश्वत कहते हैं । हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या ही रिश्वत है। हमारा देश रिश्वत-मुक्त हो जाए, तो देश का कायाकल्प हो जाए। पिछले 50 साल में देश ने जितनी तरक्की की है, आने वाले पाँच साल रिश्वत का नामोनिशान मिटा दिया जाए, तो इस अवधि में देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। भारत को किसी ने डुबोया है तो इसी रिश्वत ने, प्रलोभन ने। साधकों को भी किसी ने लूटा है, तो वह रिश्वत ही है। एक झेन कहानी है, चीन या जापान की। पहाड़ी पर स्थित एक शंकाई मठ से संदेश आया कि वहाँ एक पुजारी की आवश्यकता है। तलहटी से किसी योग्य साधु को भेजा जाए। तलहटी वाले मठ से सूचना पहुँची, तो वहाँ के प्रभारी ने दस शिष्यों का चयन कर उन्हें ऊपर वाले मठ रवाना कर दिया। अन्य शिष्य आश्चर्यचकित थे कि एक साधु की मांग है और दस जनों को भेजा जा रहा है। एक शिष्य ने हिम्मत करके पूछ ही लिया, गुरुदेव! एक शिष्य के लिए बुलावा आया था, आपने दस शिष्य क्यों भेजे? गुरु मुस्कुरा दिए। बात आई-गई हो गई। कुछ दिन बाद पहाड़ी वाले मठ से धन्यवाद आया कि आपने जिस एक शिष्य को भेजा था, वह पहुँच गया है। शिष्य फिर कौतूहल से भर उठे। एक शिष्य से रहा नहीं गया। उसने पूछ ही लिया, दस को भेजा, एक ही पहुँचा; शेष कहाँ रह गए? गुरु ने खुलासा किया, राह बड़ी दुर्गम थी। दो-तीन तो बीच के पहाड़ी स्थित राजभवनों में 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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