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________________ गुरु से ज्ञान प्राप्त करूँ । गुरु ही शिष्य को ज्ञान न देगा, तो कौन देगा? गुरु और शिष्य का संबंध बहुत प्रगाढ़ होता है। वैसे ही जैसे ज्ञानी और अज्ञानी का संबंध होता है। ज्ञानी है, इसलिए गुरु कहलाता है और अज्ञानी है, इसलिए शिष्य कहलाता है। गुरु का अर्थ है जो अज्ञान का अंधकार दूर करे। शिष्य का अर्थ है, जो अंधकार को दूर करने का रास्ता जानना चाहता है। गुरु या शिष्य होना बड़ी बात है । शिष्य होने का अर्थ है, समर्पण । अब मेरा मुझमें कुछ भी नहीं रहा? यह भाव ही शिष्य होने का प्रमाण है। जब तक मैं का भाव रहेगा, शिष्य नहीं बना जा सकता। तब तक शिष्यत्व अधूरा रहेगा। ऐसा ही हआ। एक बार स्वामी विवेकानन्द अपने शिष्यों के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। एकाएक किसी ने पूछ लिया, 'नरक क्या है ?' विवेकानन्द ने सवाल किया, 'यह सवाल कौन पूछ रहा है ?' एक शिष्य खड़ा होकर बोला, 'मैं पूछ रहा हूँ।' विवेकानन्द ने कहा, 'यह जो 'मैं' है, यही नरक का रास्ता है। शिष्य का अर्थ 'मैं' नहीं, गुरु जो कहे वही है। गुरु ने कहा, कौआ सफेद है, तो शिष्य के लिए वह सफेद ही है। भले ही कौआ शिष्य की नज़र में वास्तव में काला है, लेकिन यहाँ वह सफेद ही रहेगा। उसका हर क़दम वही होगा, जो गुरु का आदेश होगा। गुरु और शिष्य होना बड़ी जवाबदारी का संबंध है। मेरी समझ से तो किसी को गुरु बनाना ही नहीं चाहिए, किसी को शिष्य नहीं बनाना चाहिए और यदि बना लिया है, तो दोनों को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए। किसी व्यक्ति को या तो शादी करनी नहीं चाहिए क्योंकि शादी करना अनिवार्य नहीं है। पर शादी कर ली जाए, तो उसे पत्नी के प्रति अपने दायित्वों को निभाना चाहिए। कोई ज़रूरी नहीं है कि आप संतानों को जन्म दो। जन्म दे दिया है, तो फिर उनकी ज़िम्मेदारी से मत बचो। __ कोई ज़रूरी नहीं है कि आप किसी को गुरु या शिष्य बनाएँ। लेकिन ऐसा कर लिया है, तो दोनों को एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को निभाना चाहिए। गुरु और शिष्य अर्थात् एक महान पथ पर चलने वाले दो सहयात्री। शिष्य को गुरु के साथ चलने के लिए उसका पुत्र होना होता है। गुरु को अपने शिष्य के साथ चलने के लिए उसका सखा होना होता है। गुरु बनकर शिष्य को उपलब्ध नहीं करवाया जा सकता, एक मित्र बनकर शिष्य को उपलब्ध करवाया जा सकता है। नचिकेता ने अपनी ओर से महात्मा यमराज से कहा कि हे यमराज, मैं ज्ञान प्राप्त करने की मुमुक्षा के साथ आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूँ। आपसे यही चाहता हूँ कि आप मुझे मृत्यु का रहस्य समझाएँ। एक तरह से नचिकेता ने बहुत बड़ा खेल खेला। नचिकेता जैसा बालक पैदा न होता, तो संसार में कठोपनिषद् जैसा शास्त्र बन ही न पाता। धरती पर ऐसे शास्त्र का अवतरण ही न हुआ होता। नचिकेता के सवाल से यमराज हिल गए। वे फँस गए। विचार करने लगे, अपने ही बिछाए जाल से कैसे निकलें? कोई-न-कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा। पति-पत्नी बात करना चाह रहे 102 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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