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मौजूद गहरी आध्यात्मिक संभावना समाप्त हो जाएगी, आध्यात्मिक संभावना की हत्या हो जाएगी।
बुद्ध ने गौतमी से इतना ही कहा, निश्चित तौर पर मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर सकता हूँ लेकिन तुम्हें एक काम करना होगा। गौतमी तो कुछ भी करने को तैयार थी । वह बोली, आप जो कहेंगे, मैं करने को तैयार हूँ । बुद्ध ने उससे कहा, तुम किसी के घर से सरसों के सात दाने ले आओ। मैं उन दानों को अभिमंत्रित कर दूँगा और तुम्हारा पुत्र फिर से जीवित हो जाएगा। गौतमी प्रसन्न होकर वहाँ से जाने ही लगी थी कि बुद्ध ने उसे टोका, लेकिन एक बात का ध्यान रखना, सरसों के दाने उसी घर से लाना, जहाँ आज तक किसी की मृत्यु नहीं हुई हो ।
गौतमी पूरा गाँव घूम आई। लोगों ने कहा कि सरसों के दानों से यदि तुम्हारे पुत्र को फिर से जीवित किया जा सकता है तो सात दाने तो क्या, सात बोरी सरसों देने को तैयार हैं, लेकिन किसी ने कहा- उनके यहाँ दादाजी की मृत्यु हो चुकी है, तो किसी ने अन्य रिश्तेदार की मृत्यु की बात बताई। दिन भर घूमकर गौतमी थक गई और पुनः बुद्ध के पास लौटी। उन्हें सारी बात बताई ।
बुद्ध ने गौतमी को समझाया - जो पैदा हुआ है, उसका मरना निश्चित है। तुम इस मोहमाया से बाहर निकलो और अपने आध्यात्मिक स्वरूप को उपलब्ध होओ। जीवन मर्म को समझने का प्रयत्न करो कि धरती पर जो जन्म लेता है, एक दिन उसे मरना ही होता है। जो फूल खिलता है, उसे मुरझाना ही होता है। सूरज उगता है, तो शाम को उसे ढलना ही होता है.
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हँसता हुआ मधुमास भी तुम देखोगे, मरुस्थल की कभी प्यास भी तुम देखोगे । सीता के स्वयंवर पर इतना न झूमो, कल राम का वनवास भी देखोगे ||
जहाँ भारत है, वहाँ महाभारत है; जहाँ स्वयंवर है, वहाँ वनवास की भी संभावना है । जहाँ चित है, वहाँ पुट भी है। धूप के साथ छाँव और छाँव के साथ धूप; सुख के साथ दुःख और दुःख के साथ सुख; अनुकूलता के साथ प्रतिकूलता और प्रतिकूलता के साथ अनुकूलता एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। जीवन में इस सत्य का हमेशा बोध रखो। परिवर्तनशीलता ही प्रकृति का धर्म है ।
मैं कल कहा था कि मरना मना है। लोग कहते हैं, हँसना मना है और मैं कहता हूँ, मरना मना है। समय आने पर मरना तो जीवन का सौभाग्य है । मनुष्य के लिए मृत्यु वैसे ही होनी चाहिए जैसे साँप के लिए कैंचुली का उतरना होता है। शरीर तो नश्वर है; समय आने पर इसका त्याग होना ही चाहिए। इंसान आखिर कब तक इस काया को
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