SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी बुराई कर दी, किसी ने आपको काँटे चुभाए तो आपने भी काँटे चुभा दिए। प्रेम के बदले प्रेम और कटुता के बदले कटुता देना सकारात्मकता नहीं है। सकारात्मकता वह है जिसमें आपको जिसने कटुता दी है उसे भी प्रेम दें, गाली देने वाले को भी गीत दें, जिसने आपकी बुराई की है उसकी भी तारीफ करें। विपरीत स्थिति आने के बावजूद जब व्यक्ति अपनी सोच को पोजिटिव बनाये रखता है, वही है सकारात्मक सोच । प्रतिशोध, वैर-विरोध और कटुता नकारात्मक सोच के कारण होती है। ईंट का जवाब पत्थर से देने वाले लोग प्रतिशोध की भावना में जीते हैं और ईंट का जवाब फूल से देने वाले लोग मैत्री की भावना में जीते हैं; वे प्रेम, अनुराग और आत्मीयता में जीते हैं। अगर आप महसूस करें कि अमुक व्यक्ति आपके लिए गलत सोच रहा है, गलत टिप्पणी कर रहा है तो जैसे ही वह मिले, आप उसे प्रेम से प्रणाम करें, चार लोगों के बीच उसकी तारीफ करें, आपके घर आ जाए तो प्रेम से मधुर मुस्कानपूर्वक उसका स्वागत करें। हमें पता चले कि हमारे यहाँ जो व्यक्ति आया है वह हमारी निन्दा करता है, अपशब्द बोलता है, मन में कटुता रखता है तो हम उसका दुगने प्रेम से स्वागत करते हैं, ताकि हमारा व्यवहार उसकी सोच को सुधारने में सहायक बने। हम मध्यप्रदेश के एक नगर में गये थे। एक व्यक्ति अकारण हम पहुँचे उससे पहले ही विरोधी हो गया था। हम नगर में पहुँचे तो उसने अपनी ओर से विपरीत टिप्पणियाँ करने में कमी नहीं रखी। हमने अपने व्यवहार को उसके प्रति पोजिटिव बनाया। और न केवल विचार में अपितु व्यवहार में भी उसके प्रति मधुर भाव में जीने लगे। धीरे-धीरे हमारे माधुर्य ने उसके मन के कल्मष को साफ किया, परिणाम स्वरूप जब हम उस नगर से रवाना हुए तो न केवल वह व्यक्ति हमारा प्रशंसक बन गया अपितु अपने किये के लिए उसकी आँखों में प्रायश्चित के आँसू भी थे। अगर तुम अपने दुश्मन को दोस्त में न बदल सके तो मैं कहूँगा कि तुम अपने व्यवहार को सुधारो। खोल दीजिए गांठें जो पुरानी बातें, पुराने आघातों को याद करके प्रतिशोध की भावना रखता है, वह आत्मघाती है। वह दूसरों का नुकसान कर पाये या नहीं किन्तु अपना नुकसान जरूर करता है। बदला, वैर और प्रतिशोध की भावना व्यक्ति को तालाब की सूखी मिट्टी की तरह बना देती है। जब तालाब का पानी समाप्त हो जाता है तो मिट्टी सूख जाती है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं वैसे ही मनुष्य का मन भी खंड-खंड हो जाता है। बीस वर्ष पुरानी अनर्गल बातें आपके मन में डेरा जमाए रहती हैं। यह आपका मानसिक दिवालियापन और आत्मघाती मन है। बीस साल पुरानी गाँठों को भी आप खींच रहे हैं, उन्हें ढो रहे हैं। खींचने से गाँठे मजबूत होती जाती हैं और खुलने का नाम भी नहीं लेतीं। हम लोग एक शहर में थे। वहाँ एक व्यक्ति ने पन्द्रह दिन के उपवास किए। उपवास के उपलक्ष्य में उसने सम्पूर्ण समाज के लिए भोज का आयोजन किया। नगर में उस समाज के जितने भी लोग थे उन सबको उसने आमंत्रित किया। सुबह-सुबह समाज के चार-पांच वरिष्ठ लोग हमारे पास आये और कहने लगे'महाराजश्री, आज समाज के आठ-दस हजार लोग उस व्यक्ति द्वारा आयोजित भोज में आएंगे लेकिन उसका 82 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy