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________________ I और दुश्मनी के पलते हैं। एक राग, दूसरा द्वेष। यह संभव नहीं है कि व्यक्ति स्वयं को राग के दायरे से अलग कर ले, मन में व्याप्त जो मोह-माया की भावना, रागात्मक संबंध है, उनको छिटका दे । हर व्यक्ति वीतराग हो सके, यह संभव नहीं है। अपने परिवार, माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री के प्रति जो रागात्मकता है उसे मन से विलग नहीं किया जा सकता। आज जो बात मैं आपसे कहना चाहता हूँ वह जीवन से राग को मिटाने या हटाने की नहीं है आप शायद राग को न छोड़ पायें, लेकिन वैर, द्वेष, दुश्मनी से तो बच ही सकते हैं । कोई अपने जीवन में वीतराग बन सके या न बन सके, लेकिन हर व्यक्ति को वीतद्वेष अवश्य बन जाना चाहिए। आप अपने मोह को भले ही कम न कर सकें पर दूसरों के प्रति अपने विरोध को तो कम कर ही सकते हैं | आपका जिनके साथ राग और प्रेम है, उनसे आप दूर नहीं हट सकते तो जिनके साथ आपकी दुश्मनी है उनसे तो बचने की कोशिश कर ही सकते हैं। व्यक्ति अपने पुराने आघातों को याद करता है - 'ओह! तो उसने मेरे साथ ऐसा किया था, उसने भरी सभा में मेरा पानी उतारा था, उसने मीटिंग में मेरी बात काटी थी, लोगों के बीच मेरे साथ दुर्व्यवहार किया था- ऐसी बातों के प्रति उसके मन में उथल-पुथल चलती रहती है, और एक स्थिति वह आती है जब वह मानसिक रूप से तनाव ग्रस्त हो जाता है। वह निर्णय नहीं कर पाता कि जिसने मेरा अहित किया है उसके साथ मैं कैसा व्यवहार करूँ । सबको सन्मति दे भगवान ! अगर आपको लगता है कि अमुक व्यक्ति आपका दुश्मन है, उसके प्रति आपके मन में वैर-विरोध की भावना है, कटुता है, तो उसके लिए आप छ: महीने का एक प्रयोग करें। उससे माफी माँगने या उसके घर जाने की जरूरत नहीं है, न ही उसके बारे किसी से चर्चा करें। रोज सुबह जब आप भगवान् की प्रार्थना करें, पूजापाठ करें या ध्यान-साधना में बैठें तब केवल एक मिनट अन्तर्मन में यह कामना करें कि, " हे ईश्वर तू उसका कल्याण कर, उसका मार्ग प्रशस्त कर, उसको सद्बुद्धि दे और जीवन की अच्छी राहें दिखा।" अगर आप छः महीने तक लगातार अपने किसी दुश्मन के लिये ऐसी प्रेमभरी प्रार्थना कर रहे हैं तो निश्चय ही छः माह बाद वह दुश्मन आपकी दहलीज पर होगा, यह तय है । हमारे विचार और हमारी मानसिकता ब्रह्माण्ड में फैलती है। आप यह न सोचें कि मेरी आवाज आप तक या आपके शहर तक ही सीमित है, मेरी आवाज ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक जाती है। जैसे आवाज जा रही है वैसे ही मेरे विचार भी जा रहे हैं। आप प्रयोग करें, उसका परिणाम सकारात्मक ही होगा। जब तमाम मंत्र, बातें और शास्त्र निष्फल हो जाते हैं तब मनुष्य के लिए एक दवा होती है। 'सकारात्मक सोच' । जब तक व्यक्ति सकारात्मक सोच के साथ चल रहा है, उसकी हर असफलता एक दिन अवश्य ही सफलता में तब्दील हो जाएगी। = सकारात्मकता की सौरभ क्या है यह सकारात्मकता ? सकारात्मकता का मतलब यह नहीं कि किसी ने आपके साथ अच्छा किया तो आपने भी अच्छा कर दिया, आपको फूल दिए तो आपने भी फूल दे दिए, किसी ने आपकी बुराई की तो आपने Jain Education International 81 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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