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________________ मान यानि अहंकार और क्रोध का परस्पर गहरा संबंध है। क्रोध और मान में चोली-दामन का रिश्ता है। जो गुस्सैल है, वह घमंडी भी जरूर होगा। यदि कोई घमंडी है तो आप यह मानकर चलें कि उसमें गुस्से की प्रवृत्ति अवश्य है । घमंड और गुस्सा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ये दोनों साथ-साथ चलते हैं। संसार में अधिकांश अत्याचार अहंकारवश हुए हैं। अहंकार के शब्दकोश में दया, प्रेम, करुणा और आत्मीयता जैसे शब्द नहीं होते। घृणा, क्रोध, ईर्ष्या, तनाव ये सब अहंकार की शाखाएं हैं। अहंकारी व्यक्ति के सम्बन्ध कमजोर होते हैं, परिवार के लोग उससे भय खा सकते हैं पर प्रेम नहीं कर सकते। उसके मुंह के सामने भले ही लोग प्रशंसा कर दे, पर पीठ पीछे तो उसकी मजाक ही उड़ाते हैं । सच्चाई तो यह है कि अहंकार में आदमी फूल सकता है, पर फैल नहीं सकता। अभिमानी के हाथ में, ज्ञान न करता धाम। फटी जेब में क्या कभी टिक सकते हैं दाम। अहंकार से उजड़े बगिया ___ मैं देखा करता हूँ कि अगर समाज में, धर्म में, परिवार में कहीं विघटन हो रहा है, किसी प्रकार का विभाजन हो रहा है, किसी प्रकार की मानसिक दूरियाँ बढ़ रही हैं, तो इसमें सबसे प्रमुख भूमिका अहंकार की ही होती है। जब समाज में कुछ लोगों के अहंकार टकराते हैं तो समाज टूटता है । जब कुछ संतों के अहंकार टकराया करते हैं तो धर्म टता है। परिवार के कछ लोगों के अहंकार टकराते हैं तो परिवार टटता है। जब व्यक्ति अपने भीतर हर पल अहंकार को लेकर चलता है तो उसकी स्थिति सूखे तालाब में दरार पड़ी मिट्टी जैसी हो जाती है। कुछ लोग अपने भीतर इतने घटिया स्तर के अहंकार पालते हैं कि हँसी आती है। कुछ लोग अपने आप को इतना बड़ा मान लेते हैं कि जैसे उनसे ज्यादा कोई समझदार है ही नहीं। वे समझते हैं उनसे अधिक खूबसूरत, सम्पन्न, बुद्धिमान और कोई नहीं है। हर आदमी स्वयं को औरों से श्रेष्ठ मान रहा है, महान मान रहा है । हरेक को यही लगता है कि दूसरे में क्या बुद्धि है क्योंकि वही सबसे अधिक बुद्धिमान है। अहम् हटाएं, अर्हम् जगाएं स्वयं को महान और बड़ा मानने की प्रवृत्ति और दूसरों को लघु या छोटा मानने की आदत ही अहंकार को पोषित करती है। परिवार का विघटन किसी अन्य कारण से नहीं बल्कि किन्हीं दो लोगों के अहंकार के टकराने के कारण होता है । फिर वह अहंकार सास-बहू का हो या बाप-बेटे का या भाई-भाई का हो। जब अहं जगता है तो अर्हम् सो जाता है। अहम् और अहम्, अहम् और सर्वम्, अहम् और शिवम् ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते। तुम्हारे भीतर एक ही रहेगा या तो अहम् रहेगा या शिवम्। अगर शिवम् को रखना है तो अहम् को हटाना पड़ेगा। अहम् अगर भीतर बैठा है तो शिवम् कभी साकार नहीं हो सकता। अहंकार हटेगा तो ही वह निराकार साकार बनेगा। अहंकार मानव एवं ईश्वर के बीच की मुख्य बाधा है। व्यक्ति साफ-साफ निर्णय करे वह अपने भीतर शिवत्व चाहता है या अहंकार। ____70 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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