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________________ उन्हें प्रणाम न करना पड़े। बड़ा भाई होकर मैं अपने छोटे भाइयों के सामने जाकर झुकू, यह कैसे हो सकता है? एक काम करता हूँ कि मैं स्वयं ही वन में जाकर आत्मसाधना करूँगा और परमज्ञान पाऊँगा, तत्पश्चात् ही अपने भाइयों के पास जाऊंगा ताकि वे मुझसे छोटे ही कहलाएँगे। ब्राह्मी-सुंदरी! याद रखो जब तक अन्तरमन में अहंकार का शूल चुभा हुआ और दबा हुआ है तब तक व्यक्ति अपने जीवन में मुक्ति का फूल खिलाने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकता। जाओ, तुम लोग अपने भाई के पास जाओ और उसे आत्म-बोध दो कि वह अपने अहंकार को गिराये ताकि अपने जीवन में साधना के परिणाम को पा सके।' उतरें, अहंकार के हाथी से अपने पिता से आदेश पाकर ब्राह्मी और सुंदरी बाहुबली के पास गईं। बाहुबली अपने ध्यान में लीन थे। उनकी सघन साधना देखकर ब्राह्मी-सुंदरी को लगा-'ओह, ऐसी साधना तो दुनिया में किसी ने भी न की होगी' तब दोनों बहनों ने मंद-मंद स्वर में गीत गुनगुनाना शुरू किया - 'वीरा म्हारा गज थकी ऊतरो, गज चढ्या केवळ नहीं होसी रे।' ___ हे भाई! तुम हाथी से नीचे उतरो, हाथी पर बैठकर किसी को परम-ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। जब बार-बार बाहुबली के कान में ये शब्द गूंजने लगे तो बाहुबली की चेतना जाग्रत हुई। उनका ध्यान भंग हुआ और वे सोचने लगे, 'आवाज तो मेरी बहनों की है। ये मुझसे यह क्या कह रही हैं कि हाथी से नीचे उतरो।अरे, मैं तो अपने पाँवों पर खड़ा हूँ, भला हाथी पर कहाँ बैठा हूँ।' बाहुबली अन्तर्मन में पुनः-पुन: चिंतन करने लगे और परिणामतः उनकी चेतना जागृत हुई। उन्होंने पाया कि उनकी बहनें सच कह रही हैं। मैं जब तक अहंकार के हाथी पर बैठा रहूँगा तब तक चाहे जीवन भर साधना करता रहूँ पर परमज्ञान प्राप्त नहीं कर पाउंगा। बाहुबली मन में विनय भाव लिये हुए अपने छोटे भाइयों को प्रणाम करने के लिये उद्यत हो गए और जैसे ही उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाया कि उन्हें परमज्ञान और केवलज्ञान उपलब्ध हो गया है। जो कार्य बारह साल की साधना न कर पाई वह कार्य कुछ पलों की विनय भावना और नम्रता से हो गया। अहंकार के टूटने से हो गया। उन्होंने डग भरा और जीवन में भोर हो गई। मैं मानता हूँ कि यह घटना काफी पुरानी है, लेकिन यह न समझें कि अहंकार के कारण केवल बाहुबली की साधना ही अटकी थी बल्कि हमारे जीवन की साधना भी प्रभावित हो रही है, विकास अवरुद्ध हो रहा है, सम्बन्ध प्रभावित हो रहे हैं।...तो आप यह जान लें कि कहीं न कहीं कोई अहंकार की धारा, अहंकार का बंधन और अहंकार का भाव विद्यमान है। दुनिया में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा जिसके भीतर लेशमात्र भी अहंकार न हो। ऐसा व्यक्ति खोजने से भी न मिलेगा। जिसके भीतर कम या ज्यादा अहंकार की रेखाएँ, भावनाएँ अथवा घमंड की सोच न हो। अहंकार के ग्राफ में थोड़ा-बहुत फर्क होता है। किसी का अहंकार बहुत ऊँचे स्तर का और किसी का सामान्य स्तर का होता है। अहंकार जीवन में तभी प्रविष्ट हो जाता है जब कोई व्यक्ति अपने जीवन की सोच सम्भालता है। वैसे तो समझ आते ही जीवन में चार ग्रंथियाँ जुड़ जाती हैं - क्रोध, मान, माया, लोभ । इनमें भी 69 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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