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अभिमान नहीं, स्वाभिमान अपनाएं
अहंकार के दो रूप हैं - अभिमान और स्वाभिमान । अहंकार के कुछ बिंदु ऐसे हैं जिन्हें त्यागा जाना चाहिए लेकिन कुछ बिंदु ऐसे भी हैं जिन्हें जीया जाना चाहिए। शायद जिन्हें त्यागा जाना चाहिए, उन्हें तो हम जी रहे हैं और जिन्हें जीना चाहिए उनका हम त्याग किये हुए हैं। अभिमान मनुष्य को अकड़ और घमंड देता है और स्वाभिमान मनुष्य को आत्म- गौरव देता है। हर व्यक्ति में स्वाभिमान और आत्मगौरव तो होना ही चाहिए लेकिन किसी में भी अभिमान, अकड़ और नकारात्मक जीवन का दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए। अभिमान, अकड़ और घमंड जीवन के लिये नकारात्मक दृष्टिकोण देते हैं ।
हम लोगों के भीतर प्रायः आत्मगौरव कम और आत्म- अभिमान अधिक होता है । स्वाभिमान कम और अहंकार तथा अभिमान ज्यादा होता है । आप जानते हैं कि रावण का अंत क्यों हुआ ? इतिहास में सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं कि जहाँ व्यक्ति के झूठे दंभ, अनर्गल घमंड और व्यर्थ के अहंकार ने उसके जीवन को नष्ट किया है, उसकी सत्ता और सम्पति को नष्ट किया है। रावण उतना कामुक या कामांध नहीं था । उसका दोष उसके भीतर रहने वाली अहंकार की वृत्ति थी । वह कामांध कम, घमंडी ज्यादा था। रावण को कुंभकर्ण ने भी समझाया था कि वह सीता को वापस कर । और तो और, अंतिम पलों में इन्द्रजीत ने भी समझाया था कि सीता को वापस कर दे क्योंकि एक नारी के पीछे सोने की लंका और राक्षसवंश का अंत होने जा रहा था। शायद रावण की आत्मा ने भी कहा होगा कि सीता राम को लौटा दे, लेकिन सीता को लौटाने में रावण का अहंकार आड़े आ रहा था ।
रावण कामुक कम, अहंकारी ज्यादा था। सीता का अपहरण भी उसने कामवश कम, अहंकारवश ही किया था। क्योंकि जब उसकी बहन ने बताया कि उसके नाक-कान काट दिये गए हैं तब रावण का अहंकार जगा कि मेरी बहन की यह हालत ! अब राम की पत्नी की भी यही हालत कर दूँगा और उसने सीता का अपहरण किया अपने अहंकार के पोषण के लिये । अपने अंतिम क्षणों में भी अगर रावण अपना अहंकार छोड़ देता तो शायद न तो उसका वध होता और न ही आज तक रावण का दहन किया जाता ।
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पत्थरों को तय हैं ठोकरें
अहंकार व्यक्ति के विनाश का कारण है। कंस को भी शायद उसके अंतिम पलों में यह महसूस हो गया था कि कृष्ण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है । वह तो विष्णु का अवतार है और मेरा वध उसके हाथों निश्चित है। वर्ष भर तक निरन्तर रात में सोते, दिन में जागते, भोजन करते, राजसभा में बैठे हुए हर समय उसे अपनी मौत ही नजर आ रही थी। भले ही राजसभा में बैठकर उसने कृष्ण का अंत करने की योजनाएँ बनाईं पर मौत की काली परछाई तो कंस के सिर पर नाच रही थी। कंस का अहंकार ही उसके अंत का कारण बना। रावण हो या कंस, किसी का भी अहंकार टिका नहीं है। क्या होता है अहंकार का परिणाम, अगर देखना है' , इस युग में सद्दाम हुसैन सबसे जीवंत उदाहरण है। याद रखें, दुनिया ने उसी को पूजा है जिसके भीतर नम्रता और सदाशयता रही है। जो अहंकार के पत्थर बन गए, उन्होंने ठोकरें ही खाई हैं ।
जिनके भीतर अहंकार की ग्रंथि होती है उनके चारों ओर 'मैं' का जाल बुना रहता है। उन्हें लगता है कि वे
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