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________________ पत्नी ने मन में क्या सोचा होगा? तब शायद उसने सोचा होगा कि दो दिन नहीं बल्कि दस दिन बाद भी आओ तो भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि तुम जितने बाहर रहते हो, घर में उतनी ही शान्ति रहती है। यदि कोई शान्त स्वभाव वाला व्यक्ति अपनी पत्नी से दो दिन बाद वापिस आने का कहेगा तो पत्नी यही कहेगी कि हो सके तो जल्दी लौट के आना क्योंकि तुम्हारे जाने से घर सूनासूना हो जाता है। आप अपने ही क्रोधपूर्ण व्यवहार से घर को नरक बनाते हैं और शान्तिपूर्ण व्यवहार से घर को स्वर्ग। तिरुवल्लुवर कहा करते थे कि जो लोग आत्मरक्षा और मन की शान्ति चाहते हैं वे अपने जीवन में क्रोध से जरूर बचें। क्रोध करें, मगर सात्विक __ हमारा क्रोध तीन तरह का होता है सात्त्विक, राजसिक और तामसिक । घर की मर्यादाओं को बनाए रखने के लिए अथवा औरों की भलाई के लिए किया जाने वाला क्रोध सात्त्विक क्रोध होता है । इसमें व्यक्ति औरों को सुधारना चाहता है पर किसी का नुकसान करके नहीं। व्यक्ति का दूसरा गुस्सा होता है राजसिक जो अहंकारमूलक क्रोध होता है। मैंने कहा और तुमने नहीं माना यानी आपके अहंकार की संतुष्टि नहीं हुई इसलिए आपको क्रोध आया है। कई बार देखा करता हूँ कि ऑफिस में बॉस ने अथवा किसी मैनेजर ने अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कोई काम सौंपा। उस दिन उस कार्य की कोई खास जरूरत न थी और वह व्यक्ति उस कार्य को पूर्ण न कर पाया। सांझ को जब मैनेजर को खबर मिली तो उसे गुस्सा आ गया हालांकि उसे भी इस बात की खबर थी कि यह काम कोई खास जरूरी नहीं है। लेकिन वह गुस्सा केवल उस बात के लिए कर बैठा कि मैंने कहा और तुमने नजरअंदाज कर दिया। मेरे देखे घर के अभिभावकों को अधिकांश गुस्सा लगभग इसी कारण आता है। यह क्रोध होता है अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए। तीसरा क्रोध होता है तामसिक यानी ऐसा गुस्सा जो व्यक्ति केवल दूसरों को नीचा दिखाने के लिए करता है। इसमें व्यक्ति दस लोगों के बीच सामनेवाले को खरी-खोटी सुनाता है और उसकी दो कमजोरियों को भी सब लोगों के सामने व्यक्त करता है। लाभ और हानि की दृष्टि से अगर हम गुस्से को देखते हैं तो उसकी हानियाँ ही ज्यादा नजर आती हैं। क्रोधी व्यक्ति हर ओर से नुकसान उठाता है स्वास्थ्य से भी और संबंधों से भी। तीव्र क्रोध से जहाँ शरीर में अल्सर जैसे रोग पैदा हो जाते हैं, वहीं मानसिक तनाव भी पैदा हो जाता है। उच्च रक्तचाप का तो मूल कारण हमारा क्रोध ही होता है। होंठों की मुस्कान जहाँ हमारे चेहरे के सौन्दर्य को बढ़ाती है, वहीं क्रोध की रेखा सौन्दर्य को मिट्टी में मिला देती है। क्रोध हमारे दिमाग को कमजोर करने के साथ-साथ शरीर को भी कमजोर करता है इसलिए जब हमें कोई दुबला-पतला कमजोर शरीर वाला व्यक्ति मिलता है तो हम तत्काल पूछ लेते हैं - 'क्या बात है ? गुस्सा बहुत करते हो क्या?' एक बच्चा भी जानता है कि गुस्सा आदमी के शरीर से रक्त को सोख लेता है। बुजुर्ग लोग तो यहाँ तक कहा करते थे कि गुस्से से भरी हुई महिला अगर अपने आंचल का दूध भी अपने बच्चे को पिलाती है तो वह ज़हर बन जाता है। 57 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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