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________________ क्योंकि वह मेरा नहीं बल्कि मेरे भाई के घर का है।' मैंने कहा, 'सो तो ठीक है लेकिन आप लोग तो आएंगे न!' वह तपाक से बोल पड़ा, 'किसी हालत में नहीं।' मैंने पूछा, 'क्यों ऐसी क्या बात है?' वह कहने लगा कि सोलह साल पहले भरे समाज में उसने मेरा अपमान किया था तब से मैंने उसके घर का पानी तक नहीं पीया है।' मैंने बड़ी सहजता से उस भाई से कहा – 'भाई, जरा सोलह साल पुराना कोई कलेण्डर लाना।' मेरी बात सनकर वह चौंका। उसने कहा, 'आप भी कैसी मजाक करते हैं? सोलह साल पुराना कलेण्डर घर में थोड़े ही रखा जाता है।' मैंने कहा - 'महीना बीतता है तो कलेण्डर का पन्ना पलटा जाता है और वर्ष बीतने पर कलेण्डर को ही पलट दिया जाता है। जब सोलह साल पुराना कलेण्डर घर में नहीं है तो सोलह साल पुरानी बातों को क्यों ढो रहे हो।' मेरी समझाने से उसके दिमाग में मेरी बात थोड़ी-सी उतरी। मैंने दूसरे भाई को भी बुलवाया और दोनों को एक दूसरे के हाथ से मिश्री का टुकड़ा खिलाकर पारस्परिक प्रेम स्थापित किया। यह तो संयोग था कि ऐसा हो गया अन्यथा क्रोध और आवेश में तो बँधी हुई वैर की गांठों को कुछ ही लोग ऐसे होते हैं तो जीते जी वापस खोल पाते हैं। जीवन में इस तरह की स्थिति खड़ा करता है हमारे भीतर पलने वाला क्रोध। बाहर मुस्कान तो घर में क्रोध क्यों? कुछ लोगों की कुछ विचित्र आदत होती है। वे बाजार में, ऑफिस में, दुकान में या दोस्तों के बीच सदा प्रसन्न और मुस्कुराते रहेंगे पर घर पहुँचते ही गंभीर और गुस्से से भरे हुए हो जाएँगे। वे छोटी-छोटी बातों पर घर में गुस्सा करेंगे और घर की शांति को भंग करेंगे। आप घर में बड़े हैं तो उसका अर्थ यह नहीं है कि हर समय आप हो-हल्ला करें या अपने बड़प्पन को जताने के लिए घर के वातावरण को कलुषित करें। आपकी बड़ाई इसमें है कि आप घर में अपने परिवार के सदस्यों को इतना प्रेम दें कि वे आपके जाने पर आपकी शीघ्र पुनर्वापसी की कामना करें। आप नहीं जानते कि आप बार-बार गुस्सा करके अपने खुशहाल घर को नरक बना देते हैं और परिवार का हर सदस्य भीतर ही भीतर आप से टूटा रहता है। फिर स्थिति यह होती है कि जब आप सामने होते हैं तो सब लोग आपसे दबे रहते हैं और आपके बाहर जाने पर आपकी मज़ाक उड़ाई जाती है। पत्नी कहती है, 'छोड़ो, अब उनकी बातों पर कौन ध्यान दे क्योंकि 'हो-हल्ला' करना तो उनकी आदत ही बन गई है।' मुझे याद है, एक व्यक्ति जो गुस्सा बहुत किया करता था। पत्नी भी कम न थी। एक दिन पत्नी ने रात ग्यारह बजे अपने पति को नींद में से उठाया और हाथ में एक दूध का गिलास देते हुए कहा, 'लो दूध पी लो।' पति ने कहा, 'आज क्या बात है, जीवन में कभी तूने रात को दूध नहीं पिलाया, आज अचानक प्रेम कैसे उमड आया।' पत्नी ने कहा, 'जी! छोडो प्रेम-रोम की बातें। अभी-अभी मैंने कलैण्डर देखा, आज नाग पंचमी है, तो रात को साँप कहाँ से लाऊँ दूध पिलाने । तो तुमको ही.....।' ___ मुझे याद है कि एक व्यक्ति हर समय घर में गुस्से में ही रहता था। एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा, 'मैं पड़ौस के शहर में जा रहा हूँ। दो दिन में वापस लौट आऊँगा।' क्या आप बताएँगे कि उसके ऐसा कहने पर 56 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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