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________________ ,-सोचकर अपने दिमाग को भारी करने की बजाय धीरे-धीरे ही सही व्यवस्थित तौर पर एक-एक कार्य को पूर्ण करें। दिन भर में बीस कार्यों की योजना बनाने की बजाय किन्हीं दो कार्यों को पूर्ण करना कहीं ज्यादा लाभदायी है। जो व्यक्ति अपने दिन भर के कार्यों को समयबद्ध व्यवस्थित तौर पर करता है, वह सात दिन के कार्यों को एक दिन में पूरा कर लेता है। अच्छा होगा कि सुबह उठने के बाद जब आप आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो जाएँ तो दिन भर में किये जाने वाले कार्यों की एक सूची बना लें और फिर उसमें पहले किसको करना है और पीछे किसको करना है, इसके आधार पर क्रम डाल दें। आप पाएंगे कि आपने सभी कार्यों को सरलता से सम्पादित कर लिया है और कोई भी काम आपके लिए तनाव का कारण नहीं बना है। न करें हड़बड़ी, होगी नहीं गड़बड़ी एक सावधानी और रखें। कार्य को जल्दबाजी में पूर्ण करने का प्रयास न करें। हम व्यस्त रहें पर अस्तव्यस्त न रहें। हड़बडी में गड़बड़ी की ज्यादा संभावना होती है और ज्यादा जल्दबाजी हमारे दिमाग में खिंचाव और तनाव पैदा करती ही है। इससे कार्य जल्दी होने की बजाय देरी से होता है और शक्ति भी कहीं ज्यादा खर्च होती है। जीवन में अपने परिश्रम पर भरोसा रखें, जो लोग जीवन में कर्मयोग से जी चुराते हैं और रातों-रात करोड़पति होने का ख्वाब देखा करते हैं, वे लोग जीवन में सदैव वहीं के वहीं पड़े रह जाते हैं। मुझे याद है कि किसी पर्यटनस्थल पर एक होटल खुला। दुनिया का अद्भुत होटल ! बाहर लिखा था 'आप होटल में आएँ, जी भर कर खायें। जो इच्छा हो सो खाएं, बिल की तनिक भी चिंता न करें। आप के बेटेपोतों से उसका भुगतान ले लिया जाएगा।' एक मुफ्तखोर उधर से गुजरा। उसने भी उसे पढ़ा। उसे लगा कि मुफ्त में माल खाने का यह सबसे अच्छा अवसर है। मेरी तो शादी ही नहीं हुई है। यह बिल का भुगतान किससे लेगा? वह भीतर गया, जम के मनपसंद भोजन किया। बाहर जाने लगा तो होटल के मैनेजर ने सात सौ रुपये का बिल पकड़ा दिया। वह चौंका। उसने कहा, 'आपने बाहर लिखा है कि जी भर के खाओ, भुगतान बेटे-पोतों से लिया जाएगा फिर मुझे बिल क्यों दिया जा रहा है ?' होटल के मैनेजर ने कहा, 'जनाब, यह आपका खाने का बिल नहीं है। यह तो आपके बाप-दादा खाकर गये उनका बिल है।' उसे लगा कि आज बुरे फंसे। जीवन-भर याद रखें, मुफ्त के मालपुए खाने की बजाय परिश्रम की रूखी-सूखी रोटी बेहतर होती है। चिंता-तनाव : डुबाए जीवन की नाव तनाव से बचने के लिए बेवजह की चिंताओं से भी बचें। कोई काम करना हो तो उस पर व्यक्ति सोच कर निर्णय ले ले, यह तो उचित है, लेकिन किसी भी बिंदु पर केवल सोचते रहना और निर्णय न ले पाना अपने मस्तिष्क पर जानबूझ कर बोझ डालना है। वास्तव में चिंता व्यक्ति को तब सताती है जब कोई कार्य हमारी इच्छा या अपेक्षा के अनुकूल न हो रहा हो। व्यक्ति एक ही बात को जब बार-बार अपने भीतर घोटता रहता है तो उसके परिणामस्वरूप वह तनाव में आ जाता है और कभी-कभी तो बिना किसी ठोस कारण के मात्र किसी भावी अनिष्ट की आशंका से व्यक्ति चिंता में डूब जाता है। ऐसी स्थिति में तो तनाव और भी गहरा हो जाता है जब व्यक्ति हर पहलू पर नकारात्मक दृष्टि से सोचता है। हर समय प्रसन्न रहना और छोटी-मोटी बातों की चिंता करने की 32 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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