SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपसे अलग भी हो चुका है, पर दुविधा में पांच लाख रुपये व्यवसाय के लिए नहीं दे सकते ? अगर आपके बेटे ने कुछ गलत काम कर दिया, कहीं रुपये डूबो दिये, दिवाला निकाल दिया या शेयर मार्केट में पच्चीस लाख डूबा दिये तो आप अपना मकान बेचकर भी कहते हैं कि बेटा नुकसान कर आया तो भी इज्ज़त तो रखनी ही पड़ेगी। अरे, भाई के साथ ऐसा हो जाए तब ? तब भी काम आओ। अगर आपके पड़ोसी के कार आ जाए तो जलना मत कि उसके कार आ गई और मेरे तो अभी स्कूटर ही है । यह सोचना कोई बात नहीं। उसके कार आ गई, अच्छा हो गया, मेरी गली में तो एक भी कार नहीं थी, माँ बूढ़ी है अगर कभी रात में बीमार हो गईं तो पड़ौसी इतना भला है कि कभी तो कार काम आ जाएगी। औरों के साथ निःस्वार्थ भाव से पेश आएँ । अपने मन को दूसरों के प्रति निर्मल रखें। किसी का कुछ करके कृतज्ञता पाने की कोशिश न करें और न ही किसी से कुछ पाकर कृतघ्न बनें। दूसरों के सहयोगी बनें। अगर आपको पता चल जाए कि आपका पड़ौसी दुकानदार किसी मुसीबत में आ गया है तो उसे नज़रअंदाज़ न करें । उसकी मुसीबत में सहयोगी बनें। जो मुसीबत आज उस घर में आई है कल आपके घर भी आ सकती है। याद रखें मुसीबत किसी व्यक्ति विशेष के पास नहीं आती, वह किसी का भी द्वार खटखटा सकती है। एक-दूसरे का सहयोगी बनना ही मित्रता और मानवता की कसौटी है । सबसे बड़ा सहयोग तुम्हारा मुझे याद है - श्रीराम ने लंका - विजय अभियान प्रारंभ किया। समुद्र पार करने के लिए समुद्र पर पत्थरों का पुल बनना शुरू हुआ। पत्थर पर पत्थर लगाए जा रहे थे कि तभी राम ने देखा एक गिलहरी पानी में जाती है, फिर मिट्टी पर आती है और फिर पत्थरों के बीच जाती है। वापस आती है फिर पानी में जाती है, मिट्टी पर आती है और फिर पत्थरों के बीच चली जाती है। वह बार-बार लगातार यही किए जा रही थी। राम ने सोचा, आखिर यह गिलहरी कर क्या रही है । उन्होंने हनुमान से कहा, इस गिलहरी को पकड़कर लाओ तो । हनुमान गिलहरी पकड़ लाये और राम के हाथ में दे दी। राम ने गिलहरी से पूछा, ‘'तुम यह बार- बार क्या कर रही हो। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। तुम पानी में जाती हो, फिर आकर मिट्टी में लोटपोट होती हो, फिर पत्थरों के बीच जाती हो और कुछ करके वापस आ जाती हो' । इस पर उसने कहा, 'भगवन! मैंने सोचा, सती सीता की रक्षा के लिए, उसकी आन-बान और शान रखने के लिए आप लंका पर युद्ध के लिए जा रहे हैं, वानरों की सेना आपके साथ, युद्ध में सहयोगी बन रही है तो मैंने सोचा मैं भी सहयोगी बनूं। मेरे पास और तो कुछ सहयोग करने को नहीं था क्योंकि इन पत्थरों को उठाने की क्षमता तो मुझमें नहीं है तो मैंने सोचा कि इन पत्थरों के बीच जो खाली जगह है उसे मिट्टी डाल-डालकर भर दूं, ताकि जब आप सेना सहित इस पर से गुजरें तो ये पत्थर आपको न चुभें ।' भगवान श्रीराम ने कहा, 'गिलहरी, तू महान है, पर एक बात तो बता । यहाँ तो इतनी बड़ी सेना है और तू छोटी-सी बार-बार आ जा रही है, अगर किसी के पांवों के नीचे आकर मर गई तो ।' गिलहरी ने कहा, 'प्रभु ! तब मैं यह सोचूंगी कि नारी जाति के शील और धर्म को बचाने के लिए जो युद्ध लड़ा गया उसमें सबसे पहले मैं काम Jain Education International 168 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy