SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आई।' तब राम ने गिलहरी की पीठ पर स्नेह से, प्रेम और वात्सल्य से भरकर अंगुलियाँ चलाई और कहा 'लंका-विजय अभियान में सबसे बड़ा सहयोग तुम्हारा है।' । तुम छोटे हो तो यह मत सोचो कि तुम कुछ नहीं कर सकते। जो तुम्हारी हैसियत है तुम उतना तो करो। जो औरों के वक्त-बेवक्त में काम आता है उनका वक्त बेवक्त और बुरा नहीं आता है, जो दूसरों के लिए अपनी आहुति देता है। ईश्वर के घर से उसके लिए आहुतियाँ समर्पित होती हैं। ये वे बातें जिन्हें मैंने अपनी ओर से आपको समर्पित की हैं । ये बातें जीवन के लिए, जीवन के विकास के लिए, सुख के लिए सहज उपयोगी हैं। यदि आप इसमें से दो-चार बिन्दुओं को भी जीवन से जोड़ने में सफल हो जाते हैं, तो निश्चय ही जीवन धन्यभाग हो जाएगा! 169 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy