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संसार के प्रति आपके मन में जो तृष्णाएँ, कामनाएँ और वासनाएँ पल रही हैं, उनसे स्वयं को मुक्त करो। यहाँ तो हर कोई डूब रहा है, 'नानक दुखिया सब संसार'। अपने आपको डूबने से बचाना है। डूब तो हर कोई सकता है। मज़ा तो तब है जब तैरकर पार लग जाओ। जिधर धारा बह रही है, उधर ही बहते चले जाओगे तो तुमने कौनसा बड़ा काम कर लिया? तुम धारा के विपरीत बहकर दिखाओ। गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा तो मर्दा भी कर सकता है। खुबी तो तब है जब तुम गंगासागर से गंगोत्री तक की यात्रा करो। आप अगर तैरना चाहते हैं तो वह आपको तैराने के लिए तैयार है। आप तो गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा प्रारंभ करें, आगे की बात उस परमात्मा पर छोड़ दें जो सब का रक्षक और जगदाधार है।
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