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एकत्व का शाश्वत बोध
मनुष्य हर पल गतिमान रहता है। जहाँ रुकावट या ठहराव आ जाता है, वहाँ जीवन समाप्त हो जाता है। एक जीवन की समाप्ति दूसरे जीवन की शुरुआत होती है। यही कारण है कि हर व्यक्ति यात्रा कर रहा है। आप, मैं, हम सभी यात्रा पर हैं। संसार में जितने भी प्राणी हैं, सब यात्रा पर हैं।
इस यात्रा में किसी को आज तो किसी को कल मंजिल मिलने वाली है। यहाँ हर कोई मंजिल की तलाश में है। कोई आज जा रहा है, कोई कल जाएगा। सब पंक्ति में लगे हैं। आज जिस कोठी में बैठे हो, कल वहाँ से आपका बोरिया-बिस्तर बँधने वाला है। मनुष्य को जन्म के साथ ही यहाँ से वापस जाने का टिकट भी मिला हुआ है। रोते हुए आने वाले मनुष्य को हँसते हुए जाना है या रोते हुए, यह उसी पर निर्भर करता है। हँसते हुए जाओगे तो जीवन सफल होगा और रोते हुए जाओगे तो जीवन अभिशाप बना रहेगा।
जीवन के ये वरदान और अभिशाप हम सभी को मिले हुए हैं। सिकंदर ने दुनिया को जीता लेकिन जाते समय उसके दोनों हाथ खाली थे। इसकी फलश्रुति तो हमारे कर्मों पर निर्भर करती है। सिकंदर ने अपने अंतिम समय में वैद्यों से कहा कि 'मुझे कुछ क्षण जीने की मोहलत दे दो, मैं तुम्हें दौलत से तोल दूंगा।' वैद्य हँसा'कितना नादान है सिकंदर! अरे! करोड़ों रुपए देकर भी एक क्षण नहीं मिल सकता। चाहे कोई भी क्यों न हो ऐसा कौन है जो मृत्यु के चंगुल से बचा है ?'
प्रतिदिन सूर्य उदय होता है और शाम को अस्त हो जाता है । इस शाश्वत क्रम को कोई नहीं बदल सकता। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि सूर्य उगा हो और शाम को अस्त न हुआ हो। आखिर खिलने वाला हर फूल
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