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धर्म का मौलिक स्वभाव समझिये। धर्म कभी बांटता नहीं है। उसका स्वभाव ही, एक दूसरे को जोड़ना है। तुम शिव की उपासना करते हो, इसलिए शैव हो। विष्णु की उपासना करते हो, इसलिए वैष्णव हो। ईसा की उपासना करते हो, इसलिए ईसाई हो।'जिन' की उपासना करते हो, इसलिए जैन हो। ये सारे धर्म अपनी-अपनी जगह पर है। तुम इनमें रहते हुए भी अपने आपको आध्यात्मिक और धार्मिक बनाने का यत्न करो।
वास्तव में धर्म वह है जो व्यक्ति के भीतर शांति स्थापित करता है, व्यक्ति को पाप-मुक्त करता है। ऐसा नहीं है कि खूब चोरियाँ करो या अनीति धन कमाओ और मंदिर या समाज में आकर लाख-दो लाख रुपये खर्च कर कीर्ति उपार्जित कर लो। समाज में कुछ रुपये खर्च करके तुम नेता जरूर बन जाओगे, लेकिन धार्मिक नहीं हो पाओगे । धर्म को तुम्हारी नेतागिरी से कोई सरोकार नहीं है, इसलिए आप अपने-आप को बदलें, आत्मचिंतन करें। जो लोग प्रतिदिन मंदिरों में जाते हैं, प्रार्थनाएँ करते हैं, धूप-दीप करते हैं और समाज में नेता बने हुए हैं, वे जरा आत्मचिंतन करें कि वे भीतर से वास्तव में कितने धार्मिक हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि ऊपर-ऊपर से तो वे धर्म के प्रति समर्पित दिखाई दे रहे हैं, लेकिन भीतर वही जोड़-तोड़ चल रही है कि इस पद पर मैं बैलूंगा, वह पद मेरे भाई का होना चाहिए। धर्म तथा समाज में पद और प्रतिष्ठा को पाने के लिये की जाने वाली तोड़-फोड़ निन्दनीय है । परमात्मा तुम्हें ऐसे कृत्यों के लिए कभी माफ नहीं कर पाएगा। ___ क्या आप उस आदमी से कभी खुश हो पाएँगे जो आपके सामने तो जी-हुजूरी करे और पीठ पीछे बुराइयों की पिटारी खोलकर बैठ जाए। नहीं ना ! ठीक परमात्मा के मामले में ऐसा ही फार्मूला लागू होता है। मंदिर में जाकर परमात्मा की खूब जी-हूजूरी करते हो किन्तु बाहर आकर उसे नकारने लगते हो, उसकी इंसानियत की शिक्षा को नकारते हो। जो इंसान, किसी की पीठ में छुरा घोंप रहा है, वह परमात्मा की पीठ में ही छुरा घोंप रहा है क्योंकि 'वह' सर्वव्यापी है। इसलिए बदलो अपने आप को। धर्म के वास्तविक अर्थ को पहचान कर एकदूसरे के प्रति हृदय में प्रेम का दीप जलाओ।
आप धर्म से बहुत कुछ चाहते हैं। कोई बेटा माँगता है, तो कोई पैसा माँगता है, लेकिन आपने कभी विचार किया कि धर्म भी आपसे कुछ चाहता है। यदि आपने उसकी मांग पूरी नहीं की तो, भला धर्म आपका भला कैसे करेगा? ____ महाभारत में एक उक्ति आती है, 'धर्मो रक्षति रक्षितः' । जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। जो व्यक्ति धर्म की रक्षा नहीं करता, धर्म उसकी रक्षा कैसे करेगा? महावीर कहते हैं, 'धर्म तो तुम्हारे जीवन का सहारा है। कोई नदी में तैर रहा हो और तैरते- तैरते उसकी शक्ति जवाब देने लगे और ऐसे समय में कोई हवा से भरी टयब या खाली डिब्बा उसके हाथ आ जाए तो उसका बचाव संभव है। धर्म भी ऐसा सहारा जरूर बन सकता है, लेकिन वह आपकी अंगुली पकड़कर आपको नदी पार नहीं करवा सकता। धर्म तो हवा से भरा वह ट्यूब है, जिसे पकड़ लिया तो तैर जाओगे, अन्यथा डूबना तो तय है।
व्यक्ति पल-पल डूब ही तो रहा है। आधा तो डूब चुका है, डुबकियाँ लगा रहा है। भरोसा नहीं कि वह कब पूरा डूब जाएगा। सब डूबने वाले हैं, बचेंगे वे ही जिन्होंने ट्यूब पकड़ लिया है। ऐसे लोग ही पार लग सकेंगे।
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