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माटी में मिलने वाला है। लेकिन माटी-माटी में समाए, उससे पहले मानवता के लिए कुछ काम कर जाओ। इस माटी का यही सदुपयोग होगा। अपने घर में एक ऐसा पौधा लगाओ, जिसकी छाया पड़ौसी के घर तक पहुँचे। इससे इतना संतोष मिलेगा, जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। तुम आगे बढ़ना चाहते हो तो किसी को गिराओ मत। यह इंसानियत के खिलाफ है। आगे बढ़ना तुम्हारा धर्म है, पर किसी को पीछे धकेलना तो धर्म नहीं है। धर्म का मूल उद्देश्य यही है कि आप किसी को आगे बढ़ायें किन्तु बढ़ते की टांग न खीचें। ___तुम चाहे जिस मंदिर, चर्च या गुरुद्वारे में जाओ, यह तुम्हारी निजी उपासना है। धर्म के लिए यह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना किसी दुःखी के आँसू पोंछना, किसी के दर्द को कम करने में मदद करना महत्त्वपूर्ण है।
आप मंदिर गए, उपाश्रय में गए, धर्मस्थानों में गये लेकिन वहाँ जाकर भी अध्यात्म के रंग में रंगने के बजाय आपने नेतागिरी शुरू कर दी तो वहाँ जाना व्यर्थ हो गया। वहाँ जाकर भी पापों की गठरी हल्की नहीं कर पाए और उसका वजन बढ़ाने का काम ही किया। धर्मस्थानों में जाकर समाज की ठेकेदारी शुरू हो जाती है। पदाधिकारी बनने के लिए झगड़े होने लगते हैं। आपस में मन-मुटाव हो जाता है। अगर हम समाज के मंच पर आकर भी ऐसा करते हैं, तो समाज राजनीति का पर्याय बन जाएगा। समाज में रहकर हमें आत्मौपम्य के भावों का विस्तार करना चाहिये। लेकिन लोग ऐसा कहाँ करते हैं ? ' मैं इस पद पर रहूँगा और उसको नीचे गिरा दूंगा, ऐसी भावना मन से निकाल ही नहीं पाते। जिस धर्म-समाज में एक-दूजे को उठाने की बजाय गिराने की प्रवृत्ति चल रही है, उसका भविष्य अंधेरे में है। ___कोई व्यक्ति संघपति, समाज का अध्यक्ष और संरक्षक बनकर तीर्थंकर गोत्र भी उपार्जित कर सकता है, तो अपने लिए वह नरक के दरवाजे भी खोल सकता है। तुम स्वर्ग जाना चाहते हो या नरक में, यह तुम पर ही निर्भर है। पाप करते हो दुनिया में, और प्रार्थनाएँ करते हो मंदिरों में जाकर । धर्म का उपयोग पापों को धोने के लिए नहीं अपितु पापों से मुक्ति के लिए हो। तुम ऐसे धार्मिक बनो कि तुम्हारे द्वारा कोई पापकर्म ही न हो। पाप करते हो दूकान में और परमात्मा के द्वार पर जाकर धोक लगाते हो कि मुझे माफ कर देना। ऐसे में परमात्मा माफ कर देगा क्या? मंदिर में तो रोज प्रार्थनाएँ होती हैं और बाहर रोज वही पाप! कैसे चलेगा ऐसे जीवन और धर्म का रथ?
कोई व्यक्ति बलात्कार करता है, चोरियाँ करता है, तस्करी करता है और मंदिर में जाकर सौ रुपए का प्रसाद चढ़ा आता है, यह सोचकर कि परमात्मा उन सारे पापों को माफ कर देगा। गलत काम करने वाले को यदि उसके कर्मों का फल न मिले तो उसका हौसला बुलंद होता है और अच्छा काम करने वाला निराश हो जाता है। किसी ने प्रभु से पूछा कि एक व्यक्ति दिन रात आपके नाम की माला जपता है, गायत्री मंत्र के जाप करता है। दूसरा व्यक्ति वह है जिसे गीता नहीं आती, जो गायत्री मंत्र भी नहीं जानता, लेकिन आपके बताए हुए मार्ग पर चलता है। दोनों में आपको कौन व्यक्ति प्रिय है ?
भगवान ने उसे समझाया कि रात-दिन मेरे नाम की माला जपने वाला मुझे पाएगा या नहीं, यह तो मालूम नहीं है, लेकिन जो मेरे बताए मार्ग पर चल रहा है, वह मेरा है और मैं उसका हूँ।
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