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________________ नाम पर अगर तुम तानाशाही चलाते हो, मानवता की ही हत्या करते हो, तो चाहे तुम्हारा आराध्य 'ईश्वर' हो या 'अल्लाह', तुम्हें इसके लिए वे कभी माफ नहीं करेंगे। धर्म हमें बाँटता नहीं है। धर्म हमें अलग-थलग नहीं करता। धर्म हमें एक दूसरे से विपरीत दिशा में भी नहीं ले जाता। धर्म तो साथ-साथ चलने की प्रेरणा देता है। वेद कहते हैं- 'संगच्छध्वं, संवदध्वं ।' साथ-साथ चलो, साथ-साथ जीओ।जहाँ ऐसा होता है वहाँ मनुष्य का विकास होता है। इसलिए जो लोग कहते हैं कि धर्म बाँटता है, वे गलती पर हैं । वे भूल जाते हैं कि धर्म कभी ऐसा नहीं कहता। तुम्हारे भगवत् पुरुषों ने ऐसा कभी नहीं कहा कि स्वार्थी बनकर अकेले चलो। भारत ने तो 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की बात कही है। पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग एक परिवार के सदस्य हैं। अपने लिए, अपने परिवार के लिए तो हर कोई त्याग कर देगा, लेकिन दूसरों के लिए जीना ही तो महानता है। जो दूसरों के लिए मरता है, जीवन उत्सर्ग करता है, उसी के जीवन में उत्सव पैदा होता है। उसी के जीवन में राम का शौर्य और कृष्ण का कर्मयोग पैदा होता है । वही व्यक्ति महावीर की अहिंसा और बुद्ध की करुणा को आत्मसात् कर पाता है। हमने धर्म को संप्रदाय का रूप दे दिया है जिससे युवकों के मन में यह बात घर कर चुकी है कि धर्म हमें बाँटता है। वे धर्म से कटने लगे हैं। धर्म में कभी दो पर्युषण नहीं होते। दो पर्युषण पर्व तो सिर्फ सम्प्रदाय में ही होते हैं। धर्म में कभी दो महावीर जयंतियाँ नहीं होती। दो जयंतियां तो सिर्फ हमने मनानी शुरू कर दी हैं। हम अपनी-अपनी बात पर अड़े रहेते हैं । जब-जब धर्म सम्प्रदाय के नाम पर नीलाम होता है, तबतब धर्म का विकास अवरुद्ध हो जाता है। और हमने ऐसा कर दिया है। हमारे शास्त्र भले ही अनेकान्त की दुहाई देते रहें, पर हमारे सारे-विचार तो एकांतवादी ही रहे। ___मेरे देखे चाहे बाबरी मस्जिद गिरी, चाहे मंदिर बना, देश को तो इससे कोई लाभ नहीं हुआ। उलटे इस चक्कर में इंसानियत मर गई। जब मस्जिद गिरी, देश की ऊंची कुर्सी पर बैठे प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि मस्जिद दुबारा बनवा दी जाएगी, मंदिर गिरे तो वे भी बनवा दिए जाएंगे, लेकिन इनके गिरने-बनने के चक्कर में जो लोग मरे हैं, उन्हें कौन जीवित करेगा? मंदिर-मस्जिद तो बनते रहेंगे, लेकिन इंसान का क्या होगा? उसे कौन जीवित करेगा? हम पर बहुत बड़ा दायित्व है कि हम मरती इंसानियत को जीवित रखने में जुटें, अध्यात्म को नीचे गिरने से रोकें। संभव है, ऐसा करके सौ साल बाद अहिंसा और प्रेम की नींव पर हम ऐसा मंदिर खड़ा कर पाएँ, जिस मंदिर पर मानवता को गर्व होगा। हम यदि जैन धर्म को ही लें तो ऋषभदेव से लेकर महावीर तक कई वर्ष बीते लेकिन जैन धर्म में कभी कोई खास विभाजन नहीं हुआ। लेकिन महावीर के बाद के ढाई हजार वर्षों में ही हम लोगों ने अपने धर्म को कई भागों में बाँट दिया। संसार के जितने भी धर्म हैं, वे सब साम्प्रदायिकता का रूप ग्रहण कर विभाजित होते चले जा रहे हैं । इसलिए हमें धर्म की परिभाषा फिर से समझनी होगी। सिक्खों के गुरु यही समझाते रहे कि सिक्ख धर्म सबसे अच्छा है। जैन धर्म वाले भी यही कहते हैं कि जैन धर्म सबसे अच्छा है। शंकराचार्य समझाते रहे कि वैदिक धर्म सबसे अच्छा है। पादरी समझाते रहे कि ईसाई धर्म श्रेष्ठ है और मौलवी इस्लाम का गुणगान करते रहे, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि मानव-धर्म सबसे श्रेष्ठ है। Jain Education International For Perso 86 Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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