SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साम्प्रदायिक कट्टरता में जीने वाले लोगों का धर्म और आध्यात्मिकता से कोई लेना-देना नहीं है। लोग धर्म से नहीं जुड़े हैं, अध्यात्म से नहीं जुड़े हैं, सत्य और ईमान से भी नहीं जुड़े हैं। सब-के-सब किसी-न-किसी सम्प्रदाय से जुड़े हैं। किसी से भी पूछो तो वह यह नहीं कहेगा कि वह आध्यात्मिक है या धार्मिक है। वह यह नहीं कहता कि मैं ईमानदारी पर चलने वाला आदमी हूँ। वह तो यही कहेगा- 'मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं ईसाई हूँ।' हम लोगों ने धर्म के नाम पर अपने-आपको खेमों में बाँध-बाँट लिया है। हमारा लक्ष्य प्रभुता को पाना नहीं अपित अपने सम्प्रदाय को फैलाना हो गया है। सब अपने सम्प्रदाय को फैलाने में लगे हैं. अपने समह को प्रसारित करने में लगे हैं। भगवत्ता जो सम्प्रदाय की चारदिवारी से ऊपर है, उसे फैलाने या पाने में कौन लगा हिन्दुत्व और जैनत्व हमारी आराधना की पहचान हैं । इन्हें सम्प्रदाय का रूप देकर इनके लिए संघर्ष करना अच्छा नहीं है। कोई जैन है तो महावीर को फैलाना चाहेगा, हिन्दु राम-कृष्ण को, बौद्ध बुद्ध को, ईसाई ईसा को और मुसलमान मोहम्मद को फैलाना चाहेंगे। फैलाओ इन नामों के पार उनकी आत्मगत भगवत्ता को। आदमी तो झगड़ों में पड़ा हुआ है। मैं जो कहूँ, वह सत्य और तुम जो कहो, वह सब झूठ। यह सब साम्प्रदायिक झगड़ों की बातें हैं। इस देश ने जब-जब भी साम्प्रदायिकता में अपने को बाँटा है, नुकसान ही उठाया है। यूं तो सब भाई-भाई हैं, लेकिन सम्प्रदाय के नाम पर हम बँट जाते हैं। तो क्या धर्म-सम्प्रदाय बाँटने का काम करता है? क्या धर्म हमारी मैत्री में दरार डालता है? नहीं, धर्म ये सब नहीं करवाता। साम्प्रदायिकता के नाम पर आदमी ही इसे हवा देता है, 'मजहब नहीं सिखाता, आपस में वैर रखना।' ___ अब ताज्जुब की बात देखो। तुम सारे काम एक साथ कर लेते हो। एक साथ व्यापार कर लोगे, भोजन कर लोगे, एक मकान में रह लोगे, अपनी बेटी उसके घर और उसकी बेटी तुम्हारे घर आ जाएगी, पर जैसे ही धर्म का नाम आएगा, तुम परस्पर बँट जाते हो। कितने-कितने विभाजन हुए हैं धर्म के नाम पर ! हिन्दुत्व और जैनत्व को ही देखो. कितने विभाजनों से इन्हें गजरना पडा है। गण-गच्छ-पंथ-परम्परा-गरुआमना तम्हारे लिए प्रमख है जबकि जैनत्व और हिन्दत्व पीछे रह गया है। सब अपने-अपने सम्प्रदायों को फैलाने में लगे हैं. तो भला धर्म और अध्यात्म को कौन फैलाएगा, यह भी क्या आपने कभी सोचा है ? अध्यात्म को हमसे आशाएँ हैं। अब ऐसा युग आ गया है जब हम मात्र नाम के धर्म से ऊपर उठकर जीवन के धर्म में जीने की कोशिश करें। साम्प्रदायिक संकीर्णता के कारण इस देश का उत्थान कम और पतन अधिक हुआ है। वर्तमान में जो धर्म का तमाशा चल रहा है, वह और भी अधिक खतरनाक है। इस विश्व में कभी राम पैदा हुए, तो कभी कृष्ण, कभी महावीर पैदा हुए, तो कभी बुद्ध, कभी ईसा पैदा हुए, तो कभी सुकरात, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धान्तों के लिए मनुष्य जाति का विभाजन कभी भी नहीं किया। इनका उद्देश्य मनुष्य का आध्यात्मिक विकास करना था। भारत ने धर्म के नाम पर जितना विकास किया, साम्प्रदायिकता के नाम पर उतना ही पतन किया है। बताता है कि पिछले हजारों वर्षों में देश में कम-से-कम पाँच हजार युद्ध हुए और उनमें दस करोड़ इंसान बे-मौत मारे गये। इन सब झगड़ों का कारण रही साम्प्रदायिक संकीर्णता। अपने धर्म को फैलाने के Jain Education International For Person 85 Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy