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कोई यह नहीं कहता कि मेरा परमात्मा कहाँ है ? ___मरते समय भी सम्मोहन समाप्त नहीं हुआ। मरते समय व्यक्ति अपने बेटे से कहता है, 'दुकान का ख्याल रखना! घर का ख्याल रखना!' ऐसी कई हिदायतें देकर वह जाता है। भला कोई उससे पूछे कि तुम्हारे पिता ने भी तो तुमसे कहा था कि दुकान और घर का ख्याल रखना, मगर तुम तो इन्हें छोड़कर जा रहे हो। तुम्हारे बेटे भी इसे छोड़ कर जाएंगे।
आदमी जन्म से मृत्यु तक पूरा जीवन रोते-रोते पूरा करता है। अगर मरते समय भी उसकी आँखों में आंसू हैं तो यह उसका बड़ा दुर्भाग्य है। जड़ पदार्थ के प्रति सम्मोहन रखते हो। जरा चिंतन तो करो, इससे आखिरकार क्या मिलने वाला है। अरे, आखिरी वेला में तो इस सम्मोहन का जूआ उतार फेंको, कुछ उपलब्ध करते जाओ। जड़ के लिए जीवन पाया, जीया और मर गए।
व्यक्ति के मन में जब तक सम्यक्त्व भाव पैदा नहीं होगा, वह मिथ्यात्व के ही चक्कर लगाता रहेगा। सबसे पहली चीज यही है कि आदमी आसक्ति को छोड़े और अपने भीतर अनासक्त-भाव पैदा करे। छोटे-छोटे सम्मोहनों को पहले हटाओ। आदमी इन छोटे सम्मोहनों से ही नहीं उबर पाता। दिल्ली से जोधपुर आना है। आपने रेल में सीट रिजर्व करवाई। अब इस सीट के प्रति ही आपकी आसक्ति हो गई। 'यह मेरी सीट है।' भले आदमी, जोधपुर का स्टेशन आते ही सीट तो डिब्बे में ही रह जाएगी, तुम्हें जरूर सीट को छोड़ना पड़ेगा। फिर ऐसा मोह क्यों? जीवन भी एक आरक्षण ही तो है। शरीर रेल का डिब्बा है, जितने वर्षों का आरक्षण है, इस डिब्बे में उतने ही दिन रह सकते हो। आखिरकार तो डिब्बा यहीं रहेगा और तुम्हें इसे छोड़कर जाना पड़ेगा। इस सत्य को पहचान कर उसे जीवन में उतारना होगा।
यहाँ सब कुछ मिट्टी है। शरीर भी तो मिट्टी है। इसके प्रति कैसा सम्मोहन? हाथ में जो यह सोना चमक रहा है, वह भी मिट्टी है। वास्तव में तो मिट्टी का मिट्टी के प्रति ही आकर्षण है। मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा मिथ्यात्व यही है कि वह जड़ के प्रति आसक्ति रखने में ही उसे अपना जीवन मानता है। हम आसक्ति से दूर होकर आत्मबोध, आत्म-रूपांतरण के लिए कदम बढाएँ, तब तो हमारे लिए फायदा है। जीवन तो पल-पल
माप्त हो रहा है। इस जीवन में ही जीवन की असलियत को जो व्यक्ति पहचान ले, वही व्यक्ति बहिरात्मा से अंतरात्मा और फिर परमात्मा में प्रवेश कर सकता है अन्यथा जीवन मात्र माटी से माटी की खिलवाड़ बन कर रह जायेगा। जीवन का कोई सार्थक उपयोग नहीं होगा। करोड़ों का जीवन कोड़ी के भाव बिक जाएगा। हाँ, इन सब में जिसे हानि होगी. वह तम्हारी ही आत्मा की होगी। काश! हम जीवन में एक बार प्रयास करें, जड से मुक्ति का, 'पर' से मुक्ति का, स्व में स्थिति का।
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