________________
ध्यानयोग-विधि-२
१३१
सच का अनुमोदन करें, दिखे न पर के दोष । जीवन चलना बाँस पे, छूट न जाये होश ॥३३ ।। बसें नियति के नीड़ में, प्रभु का समझ प्रसाद । भले जलाये होलिका, जल न सके प्रहलाद ॥३४ ॥ 'कर्ता' से ऊपर उठे, करें सभी से प्यार । ज्योत जगाये ज्योत को, सुखी रहे संसार ॥३५ ।। शान्त मनस् ही साधना, आत्म-शुद्धि निर्वाण । भीतर जागे चेतना, चेतन में भगवान् ॥३६ ॥
शाम के समय शरीर दिनभर की व्यस्त जीवनचर्या की आपाधापी से थका हुआ होता है । प्रवृत्तियों का तनाव तन-मन पर हावी रहता है । अत: ध्यान में उतरने से पूर्व इस तनाव से मुक्त होना आवश्यक है। इसके लिए दो विधियाँ प्रस्तुत हैं -
१. कायोत्सर्ग - जब शारीरिक थकान प्रबल हो या जिन लोगों की आजीविका शारीरिक श्रम-प्रधान हो, उनके लिए यह विधि अनुकूल है ।
२. तनावोत्सर्ग - जिनका मन क्लान्त हो, उदास हो, प्रमाद या मानसिक तनाव से ग्रस्त हो अथवा जिनकी दिनचर्या मानसिक श्रम-प्रधान हो, उनके लिए यह विधि उपयुक्त है। कायोत्सर्ग
५ मिनट मन को हम ध्यान में लगाएँ , उससे पूर्व शरीर को भी ध्यानमय बना लें। इसके लिए हम कायोत्सर्ग-ध्यान करें। कायोत्सर्ग मृत्यु-बोध अथवा विदेह-बोध की प्रक्रिया से गुजरने की कला है। देह-भाव और देह-राग को छोड़ते हुए विदेहानुभूति के लिए कायोत्सर्ग की प्रक्रिया अपने आप में एक विशिष्ट प्रयोग है। यह संबोधि-ध्यान में प्रवेश के पूर्व की तैयारी है।
प्रक्रिया से गुजरने के लिए खड़े होकर, बैठकर या लेटकर सर्वप्रथम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org