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ध्यानयोग-विधि-१
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दीन-दुखी जीवों की सेवा, परमेश्वर का पूजन हो। घर आयों के आँसू पोंछे, खुशहाली हर आंगन हो । पथ-भूलों को पथ दरशाएँ, धर्म-भावना हर उर हो। हर दरवाजा राम-दुवारा, हर मानव एक मंदिर हो। आत्म-बोध की रहे रोशनी,
आँखें मन की निर्मल हों। नमस्कार है हुलसित उर से,
सकल धरा धर्मस्थल हो । निवेदन - भावगीत के समापन के साथ ही सभी साधकों से निवेदन किया जाये कि हम अपनी दिनचर्या के प्रत्येक कार्य को प्रसन्नता, मनोयोग एवं बोधपूर्वक सम्पादित करें। हर तरह की प्रतिक्रिया से बचते हुए सुख-शांति के स्वामी बने रहें। सबके प्रति प्रेम, पवित्रता और मैत्री का व्यवहार रखें। सात्विक आहार और मित-मधुर वाणी का उपयोग करें । यथासंभव मौन रखें। हर तरह के व्यसन से परहेज रखते हुए जीवन और व्यवहार को शुद्ध-संयमित बनाये रखें । हमारी प्रामाणिकता हमारी पहचान का प्रमुख चरण हो ।
___ 'गुरुवंदना' के साथ ध्यान-सत्र का समापन करें एवं गुरुदेव का उद्बोधन (प्रत्यक्ष या कैसेट प्रवचन) सुनकर आत्मबोध उपलब्ध करें।
गुरु-वंदना
गुरु की मूरत रहे ध्यान में, गुरु के चरण बनें पूजन ।
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