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पद
अवधू नाम हमारा राखै, सो परम महारस चाखै ।। नहीं हम पुरुषा, नहीं हम नारी, बरन न भांति हमारी। जाति न पांति, न साधु न साधक, नहीं हम लघु नहीं भारी।। नहीं हम ताते, नहीं हम सीरे, नहीं दीर्घ नहीं छोटा। नहीं हम भाई, नहीं हम भगिनी, नहीं हम बाप न बेटा।। नहीं हम मनसा, नहीं हम सबदा, नहीं हम तन की धरणी। नहीं हम भेख, भेखधर नाहीं, नहीं हम करता करणी।। नहीं हम दरसन, नहीं हम परसन, रस न गंध कछु नाहीं। आनंदघन चेतनमय मूरति, सेवक-जन बलि जाहीं।।
सो परम महारस चाखै/८
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