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________________ छोड़कर खाक में लेट गए। माटी में पैदा हुए और माटी में ही समा गए। मनुष्य का अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी राख के ढेर हैं। मनुष्य का भविष्य मात्र एक चिमटी राख जितना है। मनुष्य का उपयोग केवल वर्तमान में है। वर्तमान में जीने और उसकी अनुप्रेक्षा और उपलब्ध करने में है। मृत्यु के बाद केवल कर्म ही कर्ता का अनुगमन करते हैं और कोई नहीं करता है। घर की स्त्रियां दहलीज तक साथ निभा सकती हैं और परिजन श्मशान तक साथ देते हैं। एक कर्म ही व्यक्ति का व्यक्तित्व है, जो मृत्यु के उपरांत भी व्यक्ति का साथ निभाते हैं। मेरे के भाव से उबरो। सबके भाव को हृदय में लाओ । आत्मभाव हृदयंगम हो जाए। सब समान, अपने-पराये का कैसा भेद! आखिर, सब परमात्म रूप हैं। सब दरवाजे राम-दुवारे हैं। तट-तट रास रचाता चल, पनघट-पनघट गाता चल । प्यासी है हर गागर दृग की, गंगाजल ढुलकाता चल । कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है। इस सीमा में पश्चिम है, तो मन का पूरब डेरा है। श्वेतबरन या श्यामबरन हो, सुन्दर या कि असुन्दर हो, सभी मछलियां एक ताल की, क्या मेरा क्या तेरा है। गलियां गांव गुंजाता चल, पथ-पथ फूल बिछाता चल, हर दरवाजा राम-दुवारा, सबको शीष झुकाता चल तट-तट रास रचाता चल। हर मुंडेर पर दीप जला दो, हर किनारे पर रास रचा दो, रोशनी जगमगा दो। तुम्हें केवल घर वालों की आंखे दिखाई देती हैं पर धरती केवल घर जितनी ही नहीं है; नजर को और आगे बढ़ाओ। हर आंख प्यासी है। हर आंख में तुम्हारी प्रतीक्षा है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' कुछ ऐसा करो कि सारी धरती तुम्हारा परिवार हो जाये। तुम एक घर की नहीं, घर-घर की यादगार हो जाओ। मुक्त गगन के पंछी! बाबा कहते हैं कि आज जो हम अपने-आपको इतना महान समझ रहे हैं अंत में तो हमें राख ही होना है, जब हमारा यह शरीर मिट्टी ही है और मिट्टी ही होना है, तो अपनी तुच्छ अमीरी और समता का संगीत सुरीला/७६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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