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________________ लोहार का हथौड़ा है। हथौड़ा ठंडे लोहे पर गिरेगा, तो लोहे को तोड़ेगा, गर्म लोहे पर गिरेगा, तो लोहा वांछित आकार पाएगा। बाबा कोई सुनार की हथौड़ी नहीं है कि ठक-ठक कर ली और काम बन गया। वे कभी लोहे को आग में झोंकते, उसे गर्म करते महसूस होंगे, कभी हथौड़े मारते नजर आएंगे। कभी पानी में उतारेंगे, कभी चमकाएंगे, तो कभी.....। होना भी ऐसा ही चाहिये। केवल चिकनीचुपड़ी या तोता-रटन्त बातों से क्या होने वाला है? मियां-मिठू बहुत हो गये। कुछ बनना है, तो कुम्हार होना ही पड़ेगा। एक हाथ से पीटना, दूसरे हाथ से सहलाना। भीतर का कचरा, जड़बुद्धिता भी निकालना और फूल भी खिलाना, सम्बोधि की सुवास भी देना। मैं पूरा-पूरा प्रयास करूंगा कि ऐसा हो। ऐसा करने के लिए आनन्दघन का सहयोग ले रहा हूँ। बाबा से मुझे प्रेम है, उनकी अनुभव-दृष्टि आपकी अन्तरदृष्टि खोलने में काम आ सकती है। उनके पद कोई सिद्धांत या दर्शन नहीं हैं। ये तो सिर्फ अनुभव की निष्पत्तियां हैं। इनको सुनना है, इनके बारे में सोचना है, विचार करना है और अपने में जीना है। किसी अमृत-पुरुष के पद प्रेरणा पाने के लिए होते हैं, गले में ताबीज बनाकर पहनने के लिए नहीं। चरित्र को पढ़-सुनकर रट मत लो। चरित्र को जीवन में उतारने का प्रयास करो। पद चाहे आनंदघन के हों या रसखान के, मीरा के हों या कबीर के, सभी अन्तर के द्वार हैं। महावीर और बुद्ध भी क्यों न हों, उनसे प्रेरणा पाओ और आगे बढ़ो। अपने दिल का दीप खुल जलाओ। बुद्ध कहा करते थे- अपने दीप तुम स्वयं बनो। यह मत सोचो कि बुद्ध के साथ चलते हो, तो बुद्ध तुम्हें रोशनी देंगे। मेरी रोशनी मेरे काम आएगी और तुम्हारी रोशनी तुम्हारे। मैं जब तक हूँ, तब तक रोशनी है। मैं खिसका कि अंधकार का साया घिर आयेगा। जैसे ही मैं तुमसे अलग हुआ मेरी रोशनी मेरे साथ चली जाएगी; तुम्हारा अन्धकार वापस तुम्हें घेर लेगा। आपने संतों के प्रवचन सुने हैं लेकिन जब सुना, थोड़ा प्रभाव रहा। जैसे ही वे चले गए, वापस वैसे के वैसे हो गए। खुद को रूपान्तरित करने का जब तक स्वयं में पूरा संकल्प और प्रयास न होगा, सो परम महारस चाखै/३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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