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________________ किसी व्यक्ति की । अनुशासन के नाम पर बस, शासन चल रहा है। बादशाहत! आचार-विचार दरकिनार हो गये हैं, हाँ-हजूरी रह गई है। बाबा आनन्दघन किसी की हाँ-हजूरी करे, गुलामी स्वीकार करे, सम्भव ही नहीं है । यह बाबा के जीवन की एक घटना है। वे गुजरात चातुर्मास हेतु ठहरे हुए थे। जब उनका प्रवचन देने का समय हुआ तो लोगों ने कहा, थोड़ी देर के लिए रुक जाएं। जब तक नगर सेठ नहीं पहुंच जाता, तब तक आप को रुकना पड़ेगा। बाबा मुस्कुराए और पांच-दस मिनट के लिए ठहर गए मगर सेठ नहीं पहुंचा । बाबा ने प्रवचन शुरू कर दिया। सेठ तक जब यह समाचार पहुंचा, तो वह दौड़ा चला आया । आते ही आग बरसाने लगा - आपने मेरी अनुपस्थिति में प्रवचन कैसे शुरू किया। क्या आपको मालूम नहीं कि मेरी गैरहाजरी में प्रवचन शुरू नहीं होता, यहाँ की परम्परा है । बाबा ने शांत स्वर में कहा- तुम वक्त पर नहीं पहुंचे, तो इसमें मेरा क्या दोष । सेठ चिल्लाया। पैसे की गर्मी थी। सेठ ने कहा- अगर आपको इस स्थान में रुकना है, तो जब तक मैं न पहुंचूं आप प्रवचन प्रारम्भ नहीं कर सकते। बाबा ने कहा- मैं यहां गुलामी स्वीकार करने नहीं, अपनी आजादी को बढ़ाने आया हूँ । तुम यह चाहो कि मैं तुम्हारे अनुरूप चलूं, तो यह सम्भव नहीं । तुम अगर मेरे साथ चल सको, तो मेरा सहयोग तुम्हारे साथ है । सेठ फिर भी शांत नहीं हुआ पर पतझड़ों की कोशिश से उपवन की मृत्यु नहीं होती। किसी की नाराजगी से दर्पण नहीं टूटता। बाबा उसी समय खड़े हुए और जंगल में चले गए। यह घटना कोरी घटना नहीं है । यह आनन्दघन की आजादी का बीज है । यहीं से उनके जीवन में आजादी का शंखनाद होता है । बाबा तो मुक्त गगन के पंछी हैं और मुक्त गगन के पंछी को सोने के पिंजरे में ही क्यों न रखा जाए, वह सह नहीं पाएगा। गुलामी से तो, गरीबी अच्छी ! कोई सेठ संत पर कितना ही खर्च क्यों न करता हो पर संत किसी का गुलाम नहीं होता । वह आजाद होता है । स्वतन्त्रता का हामी ! हम पंछी आकाश के / ३४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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