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________________ कभी-न-कभी तो वह आएगा ही, और यह नैया, यह खेवैया कृतार्थ होंगे। मैं तो सुदामा हूँ। न तो मेरे पास भगवान को चढ़ाने के लिए बदाम और श्रीफल हैं और न ही सोने-चांदी के आभूषण । मेरे पास तो बस पल्लु में बंधे, प्यार से बांधे, खुद भूखे ही रास्ता तय कर तुम्हारे लिए लाये, ये सस्ते-हल्के चावल के सत्तू हैं। भगवान तो मेरे मित्र हैं। मैं भगवान का जन्म-जन्म का दोस्त, ये सत्तू खा लो, स्वीकार कर लो, तो दोस्ती निभ जाए। मेरी तमन्ना पूरी हो जाये। मैं.....मैं तो बूढ़ी शबरी हूँ। मेरे बाग में तो बस बेर उगे हैं। प्रभु! तुम्हें क्या चढ़ाऊं, ये बेर हैं मेरे पास । बेर ही मेरी कुटिया की सम्पदा है। स्वीकार करो प्रभु! मेरा तो धन्यभाग! प्रभु की कितनी कृपा कि खुद बेर खाने शबरी के घर-आंगन पधारे। पर बेर, मैं जानती हूँ ये खट्टे भी निकलते हैं। मैं प्रभु तुम्हें खिलाऊंगी जरूर पर पहले खुद चखकर फिर तुम्हारे चरणों में चढ़ाऊंगी। कहीं बेर खट्टे निकल गये तो! मेरे घर प्रभु पधारे और बेर खिलाऊं खट्टे। ये जूठे बेर हैं प्रभु, शबरी के बेर! आनंदघन कहते हैं कि मैं गाना-बजाना, रीझना-रिझाना कुछ नहीं जानता। तुम्हारे चरणों की सेवा कैसे की जाए मैं यह भी नहीं जानता। मैं विधि-मुक्त हूँ। मेरे पास कोई विधि नहीं है। मैं ही मेरी विधि हँ। जो जी चाहा, सो किया। मैंने तो बस, शीष अपने प्रिय के चरणों में धर दिया है और उसी की महक में डूब गया हूँ। इसीलिए पार लग गया। जो डूब गया सो पार लग गया। जो डूबने से बच गया, वह सौ फीसदी डूब गया। ___'वेद न जानूं कतेब न जानूं, जानूं न लक्षण छन्दा ।' मुझे न तो वेद-पुराणों का ज्ञान है और न ही कुरआन का। काव्य के लक्षण और छन्दों का भी मुझे पता नहीं है। कोई पंडित हो, तो वह जाने । तर्कवाद, वाद-विवाद के मकड़जाल से मैं पूरा मुक्त हूँ। कवियों की तुकबंदी से भी दूर हूँ। मैं तो स्वयं काव्य हूँ। छन्द और तुकबन्दी के नियमों से मुझे लेन-देन नहीं है। अनुभव में जो आये, भीतर में डूबकर जो भी शब्द बाहर आ जायें, मेरे लिए तो वही ठीक है। तकबंदी किसी फन्दे से कम नहीं है। मेरे लिए तो कोई फंदा नहीं है, जिसमें फूलों पर थिरकती किरणे/१०६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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