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________________ अंधकार से बाहर आना है। अज्ञान से जूझना अंधकार से जूझना है लेकिन जूझने से जीत नहीं होती। जूझकर न तो अज्ञान को भगाया जा सकता है, न अंधकार को । आखिर अंधकार से कैसे जूझोगे, किसे भगाओगे ? अंधकार है, तो उसे अंधकार रूप जानो । अज्ञान है, तो उसे अज्ञान रूप जानो। अज्ञान के अंधकार को समझो और धैर्यपूर्वक, बड़े प्यार से, बड़ी सहजता से ज्ञान के प्रकाश की खोज करो । खोज भी क्या करनी है, बस अपने भीतर जाग कर धैर्य से प्रतीक्षा करते चले जाओ। अचानक एक दिन, किसी भी क्षण चमत्कार होगा । प्रकाश तुम्हें ऐसे ही नहला देगा, जैसे अब तक अंधकार से घिरे रहे थे । तुम तो बस अज्ञान के अंधकार को पहचानो और धैर्यपूर्वक निरन्तर सतत् अपने में जागरूक, अपने में मस्त होकर स्वयं में टिके रहो, प्रज्ञा की खिड़की स्वतः खुलेगी। किरण पूरे अंधकार को चीर डालेगी । किरण ही वह माध्यम होगी, वह आधार होगी, जिससे सूरज तक, प्रकाश-पुंज तक, ज्ञान-पुंज तक, आनंद राशि तक पहुंचा जा सकेगा । एथेन्स की एक प्रसिद्ध घटना है। एथेन्स के नागरिकों ने देवी की आराधना की; यह जानने के लिए कि इस समय हमारे देश में सबसे बड़ा ज्ञानी कौन है, वह कौन है जिससे हम अपने सवाल करें। जो हमें हमारी समस्याओं के समाधान दे। पहाड़ों की देवी ने मंदिर की देवी ने कहा - सुकरात । सारी भीड़ सुकरात के पास पहुंची और देवी का वचन सुनाया। सुकरात ने कहा, देवी को समझने में शायद कहीं चूक हुई है। मैं ज्ञानी नहीं हूँ। हां, यदि दो वर्ष पहले तुम मुझ तक आते, तो में देवी के वचन का समर्थन करता पर जब से मैंने अपने भीतर प्रवेश किया और अपने अज्ञान को पहचाना, तब से मैं स्वयं को ज्ञानी नहीं मानता । तुम पुनः देवीके पास जाओ और किसी और नाम की पूछताछ करो । लोगों ने ऐसा ही किया । देवा ने कहा - सुकरात इसीलिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी है क्योंकि उसने अपने अज्ञान को पहचान लिया है । कल तक उसमें पांडित्य था, अब ज्ञान है । कल तक उसे जानकारियां थीं, आज सम्बोधि है । उसका 'मैं' मिट चुका है। उसकी रूह सूरज हो चुकी है। इतना नेक आदमी मिलना मुश्किल है, जो संबुद्ध होने के बावजूद फलों पर थिरकती किरणें / १०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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