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श्रीमेघरजामुनिकृत सत्तरन्नेदी पूजा. १
॥ काव्यं ॥ उजवज्राटत्तम् ॥ ॥ शचीपतिः सप्तदशप्रकारै- त्यामरैस्संघटितोपहारैः॥ वर्गांगनासुक्रमगायिनीषु, पूजांप्रनोः पार्श्वजिनस्य चक्रे॥१॥पुरंदरःपूरितहेमकुंनै-रदंजमंजोनिरलं सुगंधैः॥ साकं सुरौधैर्मघवा च सम्यक्,पूजां जिनेंदोःप्रथमांचकार ॥२॥इति न्हवणपूजा प्रथमा॥१॥ ॥ अथ द्वितीय विलेपनपूजा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ केसर चंदन घसी घणां, मेलवी मांहे बरास॥ नव अंगे जिन पूजतां, नव निधि श्रातम पास ॥१॥ जिनप्रतिमाने विलेपतां, शीतल थाये श्राप ॥क्रोध दावानल उपशमे, जाये जवसंताप ॥२॥
॥ राग रामग्री ॥ तथा श्राशावरी ॥ ॥कुंकुमसंयुतं,घसीय वरचंदनं,सरसघनसारगुं,मांहे मेली ॥ कंचन मणि तणां, जरीय बहु नाजनां, अगर रस कुमकुमा, तेह नेली ॥ पूजी नव अंगमां, चरण जानू करे, अंश हृदि बाहु बेहु अपार ॥ कंठ ललाट शिर, विवेपतां रंगजर,पामीए लव तणो एम पार ॥१॥
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