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________________ ४० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. फूलों केरे घर पगर, मंगल धूप अपार | गीत नृत्य वाजित्र ए, सत्तर हवे विस्तार ॥ ४ ॥ ॥ अथ प्रथम दवणपूजा प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पदेखी देमनी ॥ राग विनास ॥ ॥ प्रथम जिननायक, नौमि सुखदायकं, कृतशुचि पूर्वदिशि, सकलदेहं ॥ धोती तनु श्रावरी, एकचित्त मन करी, पश्यति दर्शनं, पुण्य गेहं ॥ सिंधुगंगादिनिस्तीर्थ गंधोदकै-र्जरितमणिकनकमय, कलशयाली ॥ जविक श्रावक मली, नाहवो परि जली, संशय मन तथा वेग टाली ॥ १ ॥ ॥ गीत राग नट्ट मल्हार ॥ ॥ जिनकी इस विधि पूजा कीजे ॥ सुंदर धर्म नही विका जन, माजनम फल लीजे ॥ मेरे जिनकी इस विधि पूजा कीजे ॥ १ ॥ निर्मल अंग करी अति उज्ज्वल, अंबर ते पहरीजे ॥ अतिहि सुगंध सुरनि द्रव्यवासित, कंचन कलश नरीजे ॥ मेरे जिनकी ० ॥ २ ॥ करी मुखकोश मोरपिठ पूंजी, पहेली पूजा रचीजे ॥ कदे घन वचन लबित मनोहर, नानि मल्हार न्हवीजे ॥ मेरे जिनकी० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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