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श्रीमेघराजमुनिकृत सत्तरनेदी पूजा. ३ कुमति तिमिर सब हणीयो रे ॥ प्रजु० ॥३॥ एणी परे सत्तर नेद पूजा विधि, श्रावककुं जिन जणीयो॥ सकल मुनीश्वर काउस्सग्गध्याने, चिंतवित तस फल चुणीयो रे ॥प्रजु०॥४॥ इति कलशः ॥ ॥इति श्री सकलचंदजी उपाध्यायकृत
सत्तरनेदी पूजा समाप्ता ॥ ॥ अथ श्रीमेघराजमुनिकृत सत्तरनेदी
पूजा प्रारंनः॥
॥अनुष्टुपवृत्तम् ॥ सर्वशं जिनमानम्य, नत्वा सशुरुमुत्तमं ॥ कुर्वे पूजाविधि सम्यक्,नव्यानां सुखदेतवे॥१॥
॥ दोहा ॥ ॥दी गोयम गणहरु,समरी सरसती एक ॥ कवियण वर आपे सदा, वारे विघ्न अनेक ॥१॥ पूजा करतां जिन तणी,श्रावक कहे सुवचन ॥ते हुं नणीश विधि करी, सांजलजो एक मन्न ॥२॥ न्हवण विलेपन वस्त्रयुग, वास फूल शुन माल ॥ वरणह चूरण ध्वज नलो, बहु थालरण विशाल ॥३॥
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