SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ गीत राग देशाख ॥ ॥ करुं हुं पूजा जिनवर केरी, यागमवचन सुण्यां में ताये, प्रगट जइ मति मेरी ॥ करुं हुं पूजा० ॥ १ ॥ केसर चंदन जरीय कचोली, अरचुं युक्ति घलेरी ॥ मणुश्रजन्मको लाहो लीजे, जक्ति करुं श्रधिकेरी ॥ करुं हुं पूजा० ॥ २ ॥ अंजलि जोरी मोरी तनु अपनो, वात कहुं जुं जलेरी ॥ देइ शाख शालय सुख केरी, मुक्ति मंदिरकी शेरी ॥ करुं हुं पूजा० ॥ ३ ॥ ॥ काव्यं ॥ उपेंद्रवज्रावृत्तम् ॥ ४२ ॥ अंगं प्रमृज्यांगसुगंधगंध - काषायिकेनैषपटेन चंद्रः ॥ विलेपनैश्चंदनकेसराद्यैः, पूजां जिनेंदोरकरोत् द्वितीयां ॥ १ ॥ इति विलेपनपूजा द्वितीया ॥ २ ॥ ॥ अथ तृतीय वस्त्रयुगल पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ त्रीजी पूजा जिन तणी, वस्त्रयुगलनी होय ॥ नयनयुगल पण को कहे, परमार्थे एक जोय ॥ १ ॥ अंशुयुग्म अंशे ग्वी, जावो जावन एम ॥ निश्चय धर्मव्यवहार वृष, आदरशुं बहु प्रेम ॥ २ ॥ अथवा ज्ञान क्रिया करी, अंगीकरशुं धर्म ॥ असंख्य प्रदेशी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy