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________________ ४४२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. जारिं श्रविष्ठा गयविवाद ॥ कुलघर सिरिनानिनरिंद गेहिं, सुसम दुःसम तिय श्रयरछेहि ॥ २ ॥ ॥ हरिगीतछंद ॥ सुसम दुःसम श्रयरमंगण, सबविमाह, सुरविं ॥ सिरिनाजिराया, कुलह मंगण, जवजाउरिं, अवतारं ॥ सुविशाल माला पउढ मुगता, गीत नाद सवे करे ॥ उत्सव जाणी, मन्न आणी, तिबंकरकुल, अवतारं ॥ ३ ॥ हवे दान दीजे, पुण्य कीजे, मन्न रीके, अति घणां ॥ घर घर मंगल, तरियां तोरण, उत्सव होय वधामणां ॥ निशिनरे पोढी, हर्ष आणी, श्शुं जाणी, एम कहे ॥ पावली राते, प्रजात वेला, सुपन मरुदेवा लहे ॥ ४ ॥ ॥ श्रथ सुपननी ढाल ॥ उलालानी ॥ ॥ प्रथम ऐरावण दीवो, नयणे श्रमीय पश्हो ॥ बीजे वृषन उदार, दीगे अति सुखकार ॥ १ ॥ त्रीजे मृगपति पेखे, दरिस डुरित उवेखे || चोथे लखमीश्र सोहे, जिए दीवे जग मोहे ॥ २ ॥ पांचमे कुसुमनी माला, बहे चंद्र विशाला ॥ सातमे तमहर दनकर, ठमे इंद्रध्वज जयकर ॥ ३ ॥ नवमे कलश मनोहर, दशमे पद्म सरोवर ॥ गीयरमे सागर सुंदर, बारमे श्रमरनुं मंदिर ॥ ४ ॥ तेरमे मणिजर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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