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________________ श्रीदेवपालक विकृत स्नात्रपूजा ४४१ मंदार, नीलुप्पल कमलदल, सिंडवारचंपय समुऊल पसरंतु परिमल मिलिय, गंधलुद्ध लुहंत मदुयर, इय कुसुमांजलि जिणचलणिं, चिंतीय पावपणास, मुक्कियतारागण सरिस ( पाठांतरे ) मुक्कियतारा अणुसरिस, जवियह पूर यास ॥ १ ॥ एम जणीने कुसुमांजलि चढावीए, बूटां फूल जगवंतनी सन्मुख वधावीए, कुसुमनो मेघ वरषावीए ॥ इति पंचम कुसुमांजलिः ॥ ५ ॥ ए पढी स्नात्रीया चैत्यवंदन करी, हाथ धूपी, कलश लई उजा रहीने श्री आदिनाथनो जन्माजिषेक कलश कहे, ते लखीए बीए. ॥ अथ श्री आदिनाथजन्माभिषेक कलशः ॥ ॥ वस्तुबंद ॥ ॥ विषयनयरी विण्यनयरी, नाजि निवतेहिं ॥ मरुदेविसिं जयरिसर, राय हंससारिव सामिय ॥ सिरिरिसदेसर पढम जिए, पढम रायवर वसहगामिय ॥ वसह अलंकिय काय तपुं, जायो जग श्राधार ॥ तसु पय वंदिय तसु तो, कहीशुं जन्म सुविचार ॥ १ ॥ ढाल ॥ सव विमाणेह चविय नाह, जव For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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