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४३० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
आवजो धरी उमंग ॥ ए ॥ एम जंपी सुघोषा घंटनाद, वजडावे सुरपति मन आह्लाद ॥ पालक यान बेसी सुहम साम, थर नंदीश्वर श्रावी जम्म गाम ॥१॥परदक्षिणा देश जिन जम्मगेह, जिन ने जननी प्रणमे सनेह ॥ पभिरूव मूकी पंच रूप करेय, हरि श्रावे मंदरशैल तेह ॥ ११॥ अवश्नो आदेश लेव, श्रानियोगिक सुर तव ततखेव ॥ खीरोदधिनां जल जरीय कुंज, तीरथजल ने मृत्तिका सुरंग ॥१२॥ ॥ ढाल बीजी ॥ नवमे मास ने बाग्मे दिवसे,
जाया जिनवर राया जी ॥ ए देशी ॥ ॥ जन्ममहोत्सव करवा कारण, सुरपति सुरगिरि मलीया जी ॥ अढीसें अनिषेक करणने, श्रमविह कलशा नरीया जी॥१॥ नवियण नाव धरीने पूजो, श्रीजिनवरनी मुसा जी॥चोसठ सहस्स कलश जल जरीने, एक अनिषेके इंशा जी ॥ २ ॥ पणवीश जोयण उंचा कलशा, पोहोला जोयण वार जी॥जोयगर्नु नाळु एक कोमि, साठ लाख मन धार जी ॥३॥ एकसो चोराणुं सुरपतिना, जाणो जिन अनिषेका जी ॥ वैमानिक देवीना षोमश, अनिषेकह सुविवेका जी॥४॥ दश असुर देवीना सुंदर,नागकुमरीना
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