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४२७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. कुंकुम लित्त ॥ शिर मुकुट मंमल, काने कुंमल, हैये नवसर हार ॥ एम सयल चूषण नूषितांबर, जगत्जन परिवार ॥ २७ ॥ जिनजन्मकल्याणक महोत्सवे, चौद जुवन उद्योत ॥ नारकी थावर, प्रमुख सुखीयां, सकल मंगल होत ॥ फुःख ऽरित इति, शमित सघलां, जिनराजने परताप ॥ तेणे हेते शांति कुमार वीयुं, नाम इति श्रालाप ॥२॥ एम शांति जिननो, कलश जणतां, होवे मंगलमाल ॥ कल्याण कमला, केलि करती, लहे लील विलास ॥ जिनस्नान करीए, सहेजे तरीए, जवसमुज्नो पार ॥ एम ज्ञानविमल, सूरींद जंपे, श्रीशांति जिन जयकार ॥२५॥ इति श्रीज्ञानविमलसूरिकृतः श्रीशांतिजिनकलशः संपूर्णः॥
॥अथ ॥ ॥श्रीअढीसें अनिषेकनो कलश प्रारं नः ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥ जय केवल कमला केलिगेह, जय कंचन कोमल विमल देह ॥ जय शांति जिनेसर शुद्ध देव, जय सकल सुरासुर करेय सेव ॥१॥ जय चउत्तिशे
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