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________________ ४२१ श्री श्रावकगुणोपरि एकवीशप्रकारी पूजा. ॥ अथ एकोनविंशति नृत्यपूजा ॥ दोहा ॥ - ॥ मूकी शंक संसारनी, जिनपति आगे जत्ति ॥ करी नृत्य सूर्याज परे, तस नहीं जवजय नृत्य ॥ ५५ ॥ ढाल ॥ नूचर खेचर अमरवर, किन्नरी नरी शुभ चित्त ॥ नाचे माचे जिनगुणे, सांचे सुकृतवित्त ॥ योग अवंचक एहथी, तेहथी जिनपद हेतु ॥ चनगइ गमनिवारण, तारण जवजलसेतु ॥ ६० ॥ काव्यम् ॥ जेह निज योगगति सहज रंगे, फोरवे अमृतानुष्ठान संगे ॥ अतुल गुणतान न चूके संगे, जावनृत्यपूजना एह ढंगे ॥ ६१ ॥ इति एकोनविंशति नृत्यपूजा ॥ १५ ॥ ॥ श्रथ विंशति स्तुतिपूजा ॥ दोहा ॥ ॥ व्याकरण काव्य अलंकृति, तर्क बंद प्रष्ठ दोष न दोषे स्तुति करे, स्तुतिपूजा गुणसह ॥ ६२ ॥ ढाल ॥ स्वर पद वर्ण विराजती, जाजती उक्ति अनूप ॥ अतिशय धारी उपकारी, अह तस शुद्ध स्वरूप संपद् त्रिक एम स्तवतो, ववतो जिनगुण चित्त ॥ सुर नर किन्नर थवे तस, एणीदृश कवे नित्त ॥ ६३ ॥ काव्यम् ॥ जेह षट् द्रव्य जिनखाए जाखे, शुद्ध स्याद्वादनी टेक राखे ॥ अवर एकांतता दूर नाखे, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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