SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥अथ सप्तदश वाजित्रपूजा ॥ दोहा ॥ ॥नंना नेरी मृदंगवर, तंत्री ताल कठताल ॥जबरी कुंछही शंख इति, वाजित्रपूज विशाल ॥५३॥ ढाल ॥ जेम जेम वाजिन वाजे, गाजे श्रति घनघोर ॥ तेम तेम जिनगुणे राचे, माचे ज्युं घन मोर ॥ निसुणी नूपति मंका, वंका तस्कर पूर॥जाये तेम वाजिवथी, गात्रथी दोष ते नूर ॥ ५४॥ काव्यम् ॥ श्रीजिन आण वरते गंधारी, नियत उपयोगी वचन ते वाद्य नारी ॥ वीर्योबास लखी मोह त्रासे, जावधी वाद्यपूजा प्रकाशे ॥५५॥ इति सप्तदश वाजित्रपूजा ॥१७॥ ॥अथ अष्टादश गीतपूजा ॥ दोहा ॥ ॥ नैरव विनास आशावरी, टोमी नट्ट कल्याण ॥ धन्यासीरी पमुहे स्तवे, पूजा गीत प्रमाण ॥ ५६॥ ढाल ॥ गुणरागे शुफ रागे, रागे जे जिन गान ॥ जागे अनुनववासना, मागे केवलमान ॥ तान मान खर ग्रामनी, मूर्चना नेदे नेद ॥ लय लागे रुचि जागे, त्यागे ममता खेद ॥ ५७ ॥ काव्यम् ॥ शुक निछ जिनरूप धारी, अहव वाबस्यता गुण संजारी॥दव गुण पजावा शुधनाखे, जावधी गीतरस तेर चाखे ॥ ५० ॥ इति श्रष्टादश गीतपूजा॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy